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‘गरीबों के बैंकर’ यूनुस होंगे अंतरिम सरकार के मुखिया

84 वर्षीय यूनुस, जिन्हें ‘सबसे गरीब लोगों के बैंकर’ के रूप में जाना जाता है, को जब वर्ष 2006 में उनके काम के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, तब उन्होंने नोबेल व्याख्यान के दौरान कहा था कि मनुष्य का जन्म भूख और गरीबी का दुख झेलने के लिए नहीं हुआ है। हमें एक ऐसी दुनिया की कल्पना करनी चाहिए, जिसमें गरीबी और अभाव इतिहास के संग्रहालयों तक ही सीमित हो।

जयपुरAug 07, 2024 / 09:45 pm

Nitin Kumar

वेद माथुर

लेखक पूर्व बैंकर और आर्थिक तथा राजनीतिक मामलों के जानकार हैं

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‘गरीबी मेरे चारों ओर थी, और मैं इससे मुंह नहीं मोड़ सकता था। मुझे विश्वविद्यालय की कक्षा में अर्थशास्त्र के सुरुचिपूर्ण सिद्धांतों को पढ़ाना मुश्किल लगता था। मैं अपने आसपास के वंचित लोगों की मदद के लिए तत्काल कुछ करना चाहता था।’ यह कथन है एक संपन्न परिवार में जन्मे नोबेल पुरस्कार प्राप्त मुहम्मद यूनुस का, जो आजकल फिर से बांग्लादेश में चर्चा में हैं। उन्हें आंदोलनकारी और सेना के साथ-साथ अन्य लोग भी पसंद करते हैं।
यूनुस ने अपने जीवन में गरीबों की पीड़ा को अनुभव किया तथा विश्वविद्यालय में शैक्षणिक कार्य के बजाय चिंतन, शोध और अपनी योजनाओं के क्रियान्वयन के माध्यम से करोड़ों लोगों को स्वरोजगार के लिए ऋण दिलवाया तथा उनकी गरीबी दूर की। मुहम्मद यूनुस ने अर्थशास्त्र में चटगांव विश्वविद्यालय से स्नातक, अमरीका के कोलोराडो विश्वविद्यालय से मास्टर्स और वैंडरबिल्ट विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उनके शोध का विषय ‘बांग्लादेश में ग्रामीण अर्थव्यवस्था’ था। यूनुस ने सीधे सामाजिक सरोकारों से जुडऩे से पहले कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में पढ़ाया, जिनमें मिडल टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी, टेनेसी विश्वविद्यालय और चटगांव विश्वविद्यालय शामिल हैं। 1971 के युद्ध में बांग्लादेश के पाकिस्तान से स्वतंत्र होने के तुरंत बाद वह वापस लौट आए। जब वह वापस लौटे, तो उन्हें चटगांव विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग का प्रमुख चुना गया, पर तब बांग्लादेश भीषण अकाल से जूझ रहा था और उन्हें लगा कि यह समय गरीबी उन्मूलन के लिए व्यावहारिक कार्रवाई करने का है।
मुहम्मद यूनुस ने गरीबों के लिए माइक्रोक्रेडिट और माइक्रो फाइनेंस की अवधारणा शुरू की और बांग्लादेश ही नहीं, दुनिया भर में लाखों लोगों का जीवन बदलने में सफल हुए। बांग्लादेश में उचित गारंटी या प्रतिभूति के अभाव में पारंपरिक बैंक ऋण नहीं मिल पाता था। लोगों को ऋण प्रदान करने के तरीकों पर कई वर्षों तक प्रयोग करने के बाद, उन्होंने 1983 में ग्रामीण बैंक की स्थापना की। कहा जाता है कि इसके बाद बांग्लादेश में गरीबी दर में काफी कमी आई। यूनुस निरंतर सरकार पर गरीबों-वंचितों की उपेक्षा व पूंजीपतियों की मददगार नीतियां बनाने का आरोप लगाते रहे। यूनुस का कहना था कि शेख हसीना की नीतियों से बांग्लादेश का समग्र जीडीपी भले ही बढ़ जाए पर इसका लाभ कम आय वाले आम आदमी तक नहीं पहुंच रहा है। शेख हसीना सरकार ने यूनुस पर टैक्स चोरी से लेकर श्रम कानून के उल्लंघन तक के दर्जनों मुकदमे दर्ज किए। हसीना के नेतृत्व वाली सरकार ने उन्हें 2011 में ग्रामीण बैंक के प्रबंध निदेशक के पद से इस आधार पर बाहर कर दिया कि वह 60 वर्ष की कानूनी सेवानिवृत्ति की आयु पार कर चुके थे। यूनुस ने इस फैसले के खिलाफ लड़ाई लड़ी पर बांग्लादेश की शीर्ष अदालत ने इसे बरकरार रखा।
अमरीका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन समेत दुनिया की १७० से अधिक शख्सियतों ने बांग्लादेश की तत्कालीन सरकार को पत्र लिखकर प्रो. यूनुस के ‘लगातार हो रहे न्यायिक उत्पीडऩ’ को रोकने की मांग भी की थी। 84 वर्षीय यूनुस, जिन्हें ‘सबसे गरीब लोगों के बैंकर’ के रूप में जाना जाता है, को जब वर्ष 2006 में उनके काम के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, तब उन्होंने नोबेल व्याख्यान के दौरान कहा था कि मनुष्य का जन्म भूख और गरीबी का दुख झेलने के लिए नहीं हुआ है। हमें एक ऐसी दुनिया की कल्पना करनी चाहिए, जिसमें गरीबी और अभाव इतिहास के संग्रहालयों तक ही सीमित हो। अब यह तय हो गया है कि शेख हसीना के पद से हटने के बाद अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस होंगे।

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