दरअसल, गलवान हिंसक ( Galwan Valley ) झड़प और पीएम मोदी के लेह दौरे के तत्काल बाद शरद पवार ने कहा था कि देश के नेतृत्व को आगे आकर सेना के जवानों का हौसला बढ़ाना समझदारी भरा कदम है।
West Bengal : 9 जुलाई से फिर लागू होगा सख्त Lockdown, ग्रीन जोन में दी जाएगी ढीलक्या कहा था पीएम मोदी ने पीएम मोदी ( PM Modi ) ने 3 जुलाई को लेह के फारवर्ड पोस्ट का दौरा किया और बिना नाम लिए ही चीन को साफ शब्दों में चेतावनी भी दी थी। उन्होंने कहा था कि विस्तारवाद का युग खत्म हो चुका है और विकासवाद का युग जारी है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि वह दोस्ती भी मन से करते हैं और दुश्मनी भी उतनी ही शिद्दत से।
पीएम की इस यात्रा के बाद चीन ने गलवान घाटी के विवादित इलाके से अपने सैनिकों को हटा लिए हैं। चीन के इस कदम को तनाव कम करने की कोशिश माना जा रहा है। लेकिन भारतीय सेना सतर्क ( Indian Army Alert ) है। ऐसा इसलिए कि चीन कई बार भारत के भरोसे को तोड़ चुका है ।
Bihar : शक्ति सिंह गोहिल ने BJP पर साधा निशाना, कहा – मतभेद महागठबंधन में नहीं NDA में है 1962 में नेहरू की छवि को लगा था झटका हालांकि सीमा पर देश के पहले पीएम नेहरू भी गए थे। लेकिन पीएम मोदी और पूर्व पीएम नेहरू के सीमा पर जाने में अंतर है। तत्कालीन पीएम नेहरू 1962 की जंग हार जाने के बाद जवानों से मिलने गए थे। नेहरू तत्कालीन रक्षा मंत्री यशवंत राव चव्हाण के साथ LAC पर गए थे। जिसके चलते चीन से हार के बाद नेहरू की उत्कृष्ट और वर्ल्ड लीडर की छवि को तगड़ा झटका लगा था।
फिर नेहरू ने कह दिया था अक्साई चिन में तिनका भी नहीं उगता है। पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू ने चीनी कब्जे पर एकबार यहां तक कह दिया था कि अक्साई चिन ( Aksai Chin ) एक बंजर इलाका है, जहां घास भी नहीं होती है। उनके इस बयान के बाद करीबी नेता मंत्रिमंडल के सदस्य महावीर त्यागी ने संसद में बहस के दौरान कहा था कि उनके सिर पर बाल नहीं उगते, तो क्या वह भी चीन को दे दिया जाए।
लेकिन पीएम मोदी ने जंग को लेकर हार-जीत के पहले लेह पहुंचकर सेना की हौसला आफजाई की। चीन को साफ तौर चेताने का काम किया कि आज का भारत 1962 वाला भारत नहीं है। बस इसके बाद ही एनसीपी प्रमुख ने मोदी और नेहरू की तुलना कर दी। शरद पवार के मुताबिक मोदी का यही स्टैंड उन्हें नेहरू से अलग कर देता है। इसलिए मोदी की छवि भी अलग है।
गलवान में खूनी झड़प में भारत के 20 जवान के शहीद होने के बाद केंद्र सरकार ( Central Government ) ने कड़ा स्टैंड लिया। इस झड़प में चीन के भी 40 जवान मारे गए थे। इतना ही नहीं मोदी ने कोरोना वायरस पर मुख्यमंत्रियों के बैठक के दौरान भी इसकी चर्चा की थी। सभी मुख्यमंत्रियों को साफ-साफ कर दिया था कि जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी। उसके बाद से पीएम मोदी लगातार चीन को बिना नाम लिए निशाने पर लेते रहे हैं।
तत्काल निर्णय लेने की क्षमता 1962 की लड़ाई में चीन के सामने जवानों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा था। उनके पास हथियार और गोला बारूद की कमी थी। लेकिन इसबार चीन की हिमाकत के बाद भारत ने तेजी से LAC पर जवानों की तैनाती की। लद्दाख में चीन से ज्यादा जवान तैनात कर दिए गए। गलवान की झड़प के बाद सेना को खुली छूट दे दी गई। वायुसेना और नौसेना को युद्ध के स्तर तक अलर्ट कर दिया गया। वायुसेना के लड़ाकू विमान लद्दाख सीमा की निगहबानी में जुट गए। इतना ही नहीं पीएम मोदी ने सेना से साफ कह दिया कि दुश्मन को करारा जवाब मिलेगा। मोदी के इस रूप को देखकर ही ड्रैगन आश्चर्य में हैं। जबकि पंडित नेहरू ने 1962 की लड़ाई में टालू रवैया अपनाया था। कुछ लोगों में देशहित ( National Interest ) से भी परे जाकर भरोसा किया। जबकि नेहरू जनता का प्रचंड समर्थन होते हुए भी सख्त निर्णय नहीं ले पाए।
इकॉनोमिक वार की घोषणा पीएम मोदी लेह जाकर चीन को चेतावनी तक ही खुद को सीमित नहीं रखा। उन्होंने चीन के खिलाफ आर्थिक जंग ( Economic War ) भी छेड़ दी और कूटनीतिक मोर्चे पर भी चारों तरफ से घेर लिया। 1962 के उलट भारत ने इसबार चीन को सामरिक, कूटनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर घेरा। मोदी सरकार ने ड्रैगन को उसकी औकात बताते हुए TikTok समेत चीन के 59 ऐप्स पर भारत में बैन लगा दिया। कई महत्वाकांझी प्रोजेक्ट रद्द कर दिए।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस दौरे में मिग 29 से लेकर ऐंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम S-400 की जल्दी आपूर्ति का आग्रह कर आए। रूस भी अपने पुराने दोस्त भारत को सभी मदद को तुरंत तैयार हो गया।
कूटनीतिक मोर्चा भारत ने चीन को कूटनीतिक मोर्चे ( Indian Diplomacy ) पर अमरीका, फ्रांस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, इजरायल, जापान समेत दुनिया के कई देश भारत से समर्थन में खुलकर आ गए। अमेरिका ने तो यहां तक कह दिया कि वह भारत को सैन्य मदद भी मुहैया करा सकता है चीन के खिलाफ।
कूटनीतिक मोर्चे पर भी नेहरू ने भारत के पक्ष में लामबंदी नहीं की। यही वजह है कि उस समय चीन के प्रति नहेरू की नीति की विपक्ष ने जोरदार आलोचना की थी। इस युद्ध में चीन ने भारत की जमीन को हड़प लिया। विपक्ष ने नेहरू से लेकर तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन को पर निशाना साधा था।