रविवार को अलवर में केन्द्र सरकार के तीन साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करने आ रहे अहीरवाल के दिग्गज नेता के दौरे को भी राजनीति के गलियारे में इसी से जोड़ कर देखा जा रहा है।
सांसद चांदनाथ के चुनाव जीतने के बाद अलवर से मुंह फेर लेने से जिले की राजनीति में आई शून्यता को भरने के लिए में एक और कदावर नेता की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। यादव बहुल जिला होने के कारण फिलहाल अहीरवाल के कुछ दिग्गजों की अलवर पर खासी नजर है। वहीं कुछ उद्योगपति भी सरकार में ऊंचे रसूख के चलते अलवर की राजनीति में जमीन तलाशने में जुटने लगे हैं।
कयास है केन्द्र की राजनीति में हस्तक्षेप रखने वाले अहीरवाल के एक दिग्गज नेता अपनी पुत्री को आगामी लोकसभा चुनाव अलवर से लड़ाने के इच्छुक हैं। वहीं सरकार व भाजपा में प्रभाव रखने वाले जिले के कुछ यादवी नेता भी आगामी लोकसभा चुनाव के लिए जमीन तलाशने की जुगत में है। कांग्रेस में भी कुछ यादवी नेता आगामी लोकसभा चुनाव के प्रति सक्रिय दिखाई देते हैं। हालांकि भाजपा की ओर से ऐसी किसी भी संभावना से इंकार किया है।
हरियाणा के अहीरवाल से जुड़े हैं अलवर के तार
हरियाणा के अहीरवाल से अलवर जिले का नजदीकी संबंध रहा है। जिले के बड़ी संख्या में यादव परिवारों की अहीरवाल में रिश्तेदारी व वहां से लोगों से सम्पर्क है। पिछले दिनों अहीरवाल के बड़ी संख्या में लोगों ने अलवर जिले में प्रोपर्टी भी खरीदी है। इस कारण यहां के लोगों का अहीरवाल में आना-जाना रहता है और अनेक अवसरों पर एक दूसरे के कामकाज में शरीक होते हैं। इसी कारण अहीरवाल के नेताओं को अलवर की राजनीति काफी मुफीद मानी जाती है।
पूर्व में भी आजमा चुके हैं अलवर से भाग्य अलवर की राजनीति में पहले भी कई नेता भाग्य आजमा चुके हैं, इनमें से वर्तमान सांसद चांदनाथ भी शामिल हैं। वे मूलत:हरियाणा के रोहतक जिले से हैं। सांसद चुने जाने से पूर्व एक बार बहरोड़ से भाजपा के विधायक भी रह चुके हैं। इसके अलावा हरियाणा के दिग्गज नेता रहे राव वीरेन्द्र सिंह की बहन सावित्री देवी भी साठ के दशक में अलवर से लोकसभा चुनाव में भाग्य आजमा चुकी है, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
जातिगत राजनीति का दबदबा जिले की राजनीति में अहीर वोटों का दबदबा माना जाता है। यही कारण है कि प्रमुख दलों की नजर अहीर मतों पर रहती है। जिले के बहरोड़, मुण्डावर, किशनगढ़बास, तिजारा आदि विधानसभा क्षेत्रों में अहीर वोट निर्णायक स्थिति में माने जाते हैं।
इसके अलावा अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी अहीर मत उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। यही कारण है कि अस्सी के दशक के बाद अलवर में अहीर राजनीति का दबदबा रहा है। अस्सी दशक से अब तक के लोकसभा चुनाव में तीन बार को छोड़ ज्यादातर में यादव वर्ग का प्रतिनिधि ही लोकसभा में दस्तक देते रहे हैं।