बड़ी खबर: आज से किसानों ने इन जरूरी चीजों की सप्लाई कर दी है ठप, कर लें इंतजाम
कल 2 जून है और इस दिन को लेकर एक बहुत ही फेमस कहावत कही जाती है कि बहुत खुशकिस्मत होते हैं वे लोग जिन्हें 2 जून की रोटी नसीब होती है। आज हम बात कर रहे हैं दो जून की रोटी के बारे में। दरअसल दो जून की रोटी से किसी महीने का मतलब नहीं है बल्कि यह तो दो टाइम की रोटी के लिए कहा गया है। इसका मतलब है, दो समय यानि सुबह और शाम की रोटी से।
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अखिलेश यादव ने लखनऊ में बैठे-बैठे कर दियासीधे अगर बात करें तो यह कहा जाता है कि दो जून यानि दो टाइम की रोटी केवल नसीब वालों को ही मिलती है। भारत में ऐसे भी लोग हैं, जिनके लिए गणतंत्र के मायने महज दो जून की रोटी का जुगाड़ करने से ज्यादा कुछ नहीं है। उन्हें नहीं पता कि उनका देश दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र है। वो सदियों से गरीबी की फटी चादर ओढ़ कर अपना गुजरा करते आए हैं। अमीर लोगों की दया और सड़क पर खरीदारों का जज्बा इनके सुबह शाम की रोटी की किस्मत तय करते हैं। ऐसे ही ये लोग हैं जो हर शहर की रेडलाइट, सड़कों, चौराहों पर कुछ सामान बेचते मिल जाएंगे। अमूमन बच्चों के खिलौने बेचेने वाले इन गरीब लोगों को त्यौहारों का बेसब्री से इंतजार होता है क्योंकि इन खास मौकों पर ही इनकी आमदनी इतनी होती है, जिससे ये भर पेट दोनों वक्त का खाना खा (दो जून की रोटी) सकें।
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जयंत चौधरी का बड़ा बयान, कह दी ये बातबच्चों को भगवान का रूप माना जाता है लेकिन वो ही बच्चे दो जून की रोटी के लिए कारखानों, बस स्टैंडों, रेलवे स्टेशनों, होटलों, ढाबों पर काम करने से लेकर कचरे के ढेर में कुछ ढूंढता मासूम बचपन आज न केवल 21वीं सदी में भारत की आर्थिक वृद्धि का एक काला चेहरा पेश करता है बल्कि आजादी के करीब 7 दशकों बाद भी सभ्य समाज की उस तस्वीर पर सवाल उठाता है, जहां हमारे देश के बच्चों को सभी सुख सुविधाएं मिल सकें। दो जून की रोटी ने आज बचपन को इतना लाचार और बेबस बना दिया है कि भारत के बड़े व छोटे शहरों में आपको कई बच्चे ऐसे मिल जाएंगे जो कि बाल मजदूरी की गिरफ्त में हैं।
पत्रिका संवाददाता ने इस बारे में कुछ लोगों से बात की तो उनका भी यही कहना है कि लगातार बढ़ती महंगाई ने आम लोगों की कमर तोड़कर रख दी है। जिसके कारण लोगों को दो जून की रोटी भी मयस्सर नहीं हो पा रही है। इस बारे में बात करने पर एक निजी कम्पनी में काम करने वाले रोहित ने बताया कि वह जब से कम्पनी में कार्य कर रहे हैं तभी से उनकी पगार उतनी ही है। उन्हें इस कम्पनी में काम करते हुए करीब 5 साल हो गए, लेकिन उनकी पगार अभी भी उतनी ही चली आ रही है, जिसके कारण इन्हें अपने परिवार का भरण पोषण करना काफी मुश्किल साबित हो रहा है।
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इसके अलावा हमने बिल्डिंग मेटेरियल की दुकान पर काम करने वाले एक किशन नाम के मजदूर से बात की तो उसका भी यही कहना है कि जिस कदर महंगाई बढ़ रही है, उतनी उन्हें मजदूरी भी नहीं मिल पाती है। इसलिए उन्हें 2 जून की रोटी मिलना भी बहुत मुश्किल हो रहा है। इसका जिम्मेदार उन्होंने सीधे-सीधे मौजूदा सरकार को बताया और कहा कि सरकार भले ही गरीबों के हितों के बारे में काम किए जाने के तमाम दावे करती हो, लेकिन आज भी गरीब लोगों को 2 जून की रोटी मिलना मुश्किल साबित हो रहा है। लगातार दैनिक उपयोग की चीजें महंगी हो रहीं हैं। जिससे आम आदमी का बजट गड़बड़ा गया है। अब दो जून की रोटी कमाने के लिए लोगों को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। खासकर नौकरीपेशा और मध्यम वर्ग का, उनके लिए काफी मुश्किल हो रही है। टीम पत्रिका ने इसी के तहत दो जून की महंगी रोटी को लेकर लोगों की राय जानी, जिसमें सब त्रस्त नजर आये।
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मुरादाबाद महानगर में राशन का कारोबार करने वाले राजीव शर्मा ने बताया कि पिछले काफी समय से पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। इस कारण फल, सब्जी, दूध सभी दैनिक उपयोग की वस्तुएं महंगी हो रही हैं, क्योंकि पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से ढुलाई महंगी हो गयी है। उनके मुताबिक बाजार में महंगाई से अमीर वर्ग पर तो कुछ ख़ास असर नहीं पड़ता, लेकिन महंगाई से सबसे ज्यादा मध्यम वर्ग प्रभावित होता है। इसलिए सरकार को महंगाई को लेकर कोई ठोस उपाय करने चाहिए। ताकि रोजमर्रा की जरुरी चीजों के दाम स्थिर रहें और उसका रोजी रोटी पर प्रभाव न पड़े।
कुछ यही राय जिला अस्पताल में कंप्यूटर ऑपरेटर सक़लेन कुरैशी का भी है। उनके मुताबिक उनके सामने काफी दिक्कत इसलिए भी है, क्योंकि उनकी सेलरी निर्धारित है। उसी के हिसाब से महीने का बजट भी है, लेकिन बीते दो से तीन महीने में लगातार पेट्रोल और डीजल के दामों में वृद्धि के साथ कई और चीजों में के दाम भी लगातार बढ़ रहे हैं। इसलिए सरकार को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।