वाराणसी. सावन का महीना शिव का सबसे प्रिय महीना जाता है। इस महीने में हर सोमवार को शिव के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। कल सावन का तीसरे सोमवार की पूजा होगी। इस सोमवार को अर्धनारिश्वर की पूजा करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्यवती का वरदान प्राप्त होता है। वहीं संतान सुख उसकी सुरक्षा, दीर्घायु की प्राप्ति होती है तथा अकाल मृत्यु का भय निवारण होता है। गृहस्थ जीवन में शान्ति के लिए इस स्वरूप की आराधना करनी चाहिए। इस आराधना में शिव के विभिन्न मन्त्रों में से किसी एक का जप करना चाहिए। वैसे भी शास्त्रों तथा विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में हर स्वरूप के अलग अलग मन्त्रों का उल्लेख किया गया है।
भगवान शिव ने इस वजह से लिया था अर्धनारीश्वर का रूप
भगवान शिव की पूजा सदियों से हो रही है लेकिन इस बात को बहुत कम लोग ही जानते हैं कि शिव का एक और रूप है जो है अर्धनारीश्वर। दरअसल, शिव ने यह रूप अपनी मर्जी से धारण किया था। वह इस रूप के जरिए लोगों का संदेश देना चाहते थे कि स्त्री और पुरुष समान है। आइए जानते हैं इस घटना का चक्र। आखिर किस वजह से भगवान शिव को यह रूप धारण करना पड़ा था।
स्त्री-पुरुष की समानता का पर्याय है अर्धनारीश्वर
भगवान शंकर के अर्धनारीश्वर अवतार में हम देखते हैं कि भगवान शंकर का आधा शरीर स्त्री का तथा आधा शरीर पुरुष का है। यह अवतार महिला व पुरुष दोनों की समानता का संदेश देता है। समाज, परिवार तथा जीवन में जितना महत्व पुरुष का है उतना ही स्त्री का भी है। एक दूसरे के बिना इनका जीवन अधूरा है, यह दोनों एक दूसरे को पूरा करते हैं।
इसलिए लिया यह अवतार
शिवपुराण के अनुसार सृष्टि में प्रजा की वृद्धि न होने पर ब्रह्माजी के मन में कई सवाल उठने लगे, तब उन्होंने मैथुनी सृष्टि उत्पन्न करने का संकल्प किया। लेकिन तब तक शिव से नारियों का कुल उत्पन्न नहीं हुआ था, तब ब्रह्माजी ने शक्ति के साथ शिव को संतुष्ट करने के लिए तपस्या की।
ब्रह्माजी की तपस्या से परमात्मा शिव संतुष्ट हो का रूप धारण कर उनके समीप गए तथा अपने शरीर में स्थित देवी शक्ति के अंश को पृथक कर दिया। उसके बाद ब्रह्माजी ने उनकी उपासना की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शक्ति ने अपनी भृकुटि के मध्य से अपने ही समान कांति वाली एक अन्य शक्ति की सृष्टि की जिसने दक्ष के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया।
अर्धनारीश्वर लेकर भगवान ने यह संदेश दिया है कि समाज तथा परिवार में महिलाओं को भी पुरुषों के समान ही आदर व प्रतिष्ठा मिले। उनके साथ किसी प्रकार का भेद-भाव न किया जाए।
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