छिंदवाडा. 152 देश के लोगों को अपने सहजयोग से तनाव मुक्त, खुशहाल बनाने वालीं निर्मला देवी जब पैदा हुईं थीं लोग आश्चर्यचकित हो गए थे। लोग बताते हैं कि माता निर्मला देवी जन्म लेने के बाद रोर्इं नहीं, बल्कि उनके चेहरे पर मुस्कान खिली थी। उस समय देखने के बाद उनकी मां ने उन्हें निश्कलंका की संज्ञा दी थी।
1923 में हुआ था जन्म
निर्मला देवी को शिवमाता व श्रीमाता के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म छिंदवाड़ा के लिंगा में 21 मार्च 1923 को हुआ था। उनके पिता प्रसाद राव राजवंश के वंशज थे। माता के छोटे भाई को भी सहजयोगी बाबा मामा के नाम से जाना जाता था। उन्होंने अपनी एक संस्मरणात्मक पुस्तक भी लिखी थी।
जन्मदिन तिथि का दिन-रात था बराबर
माता निर्मला देवी का जब जन्म हुआ था उस दिन, दिन और रात बराबर था। इस दिन सूर्य भू-मध्य रेखा से कर्क रेखा तक अपना सफ र पूर्ण करता है। भारत में सूर्य अपने तेज को इसी दिन से पुन: प्रारंभ करता है। श्रीमाताजी का जन्म बुधवार को हुआ। यदि इतिहास उठाकर देखें तो कई संतों का जन्म बुधवार के दिन हुआ। उनकी मां को प्रसव पीड़ा बहुत कम हुई। वे जन्मते जब रोईं नहीं तो जबरन रुलाया गया। उनके चेहरे पर असीम शांतिपूर्ण मुस्कान थी। उनके शरीर का रंग गुलाबी था। विष्णु के दस अवतारों में एक अवतार का नाम निष्कलंका है।
भारत छोड़ो आंदोलन में हुईं थीं शामिल
माता भारत छोड़ो आंदोलन में भी शामिल रहीं। इनके पिता भी सेनानी। मां भी कई बार अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में जेल गईं। माताजी ने 1947 के जातीय दंगों में तीन लोगों को दंगाइयों से बचाया, उनमें एक अचला सचदेव, दूसरे बलराज साहनी और तीसरे साहिर लुधियानवी थे। आजादी की लड़ाई के चलते उन्होंने लाहौर में चल रही अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई अधूरी ही छोड़ दी। पांच मई 1970 में गुजरात राज्य के नारगोल में सहस्तरार खोला और विश्व को सहजयोग की देन दी। आज विश्व के 152 देशों में सहजयोग फैला हुआ है। विश्व के इन देशों में माताजी को कई सम्मान भी प्राप्त हुए।
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