‘तम्बाकू नियंत्रण के मानव-केंद्रित दृष्टिकोण’ रिपोर्ट के अनुमान से साल 2030 तक तम्बाकू से होने वाली 80 प्रतिशत से ज्यादा मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) में होने का अनुमान है। तम्बाकू के उपयोग के कारण होने वाली एक तिहाई मौतें सीवीडी के कारण होंगी। इसलिए भारत में तम्बाकू के कारण होने वाली मौतों से लोगों को बचाने के लिए एक नए दृष्टिकोण पर विचार किए जाने की जरूरत है।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत में 27 प्रतिशत व्यस्क तम्बाकू का सेवन करते हैं, और तम्बाकू के सेवन में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर आता है। साथ ही भारत में 38 प्रतिशत व्यस्क पुरुष तम्बाकू का सेवन करते हैं, जबकि तम्बाकू सेवन करने वाली व्यस्क महिलाओं की संख्या 9 प्रतिशत है। तम्बाकू सेवन से होने वाली बीमारियों और मौतों की वजह से देश को हर साल 1 प्रतिशत जीडीपी का नुकसान होता है, और स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले कुल खर्च का 5 प्रतिशत तम्बाकू से होने वाली बीमारियों के इलाज में खर्च हो जाता है।
जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का विचार है कि तम्बाकू से होने वाली मौतों को कम करने का सबसे तेज रास्ता इसका त्याग करना है। इसके लिए एफसीटीसी ने टैक्स में वृद्धि, धूम्रपानरहित स्थानों, विज्ञापनों पर प्रतिबंध और शैक्षिक कार्यक्रमों जैसी नीतियों पर बल दिया है। तम्बाकू सेवन को कम करने की सार्वजनिक नीति में क्लिनिकल और मेडिकेटेड समाधानों को पूरी तरह से शामिल नहीं किया गया है। विभिन्न वैकल्पिक उत्पाद और रोकथाम की नीतियां लोगों द्वारा तम्बाकू सेवन का त्याग करने में काफी कारगर साबित हुए हैं। इन उत्पादों के उपयोग में कमी लाने के लिए कई रणनीतियाँ बनाई गई हैं, जिनमें सरकारी प्रोत्साहन, जागरुकता अभियान, और स्वास्थ्यकर्मियों का सहयोग शामिल है।