पहले के मुकाबले ज्यादा तेजी से फले-फूले शोधकर्ताओं ने दक्षिण अफ्रीका के उत्तर-पूर्वी इलाके में बार्बर्टन ग्रीनस्टोन बेल्ट की प्राचीन चट्टानों पर इस उल्कापिंड के प्रभाव का अध्ययन किया। उन्हें प्राचीन कार्बनिक पदार्थों के रासायनिक संकेत और समुद्री बैक्टीरिया के जीवाश्म मिले। इससे पता चला कि विनाश के बाद जीवन सामान्य दशा में लौट आया था। पृथ्वी पर जीवन पनपने की प्रक्रिया न सिर्फ तेज हुई, बल्कि यह पहले के मुकाबले ज्यादा फल-फूल गया।
चट्टानें बनीं भाप, उबलने लगा समुद्र शोध की मुख्य लेखक नादया ड्राबॉन का कहना है कि उल्कापिंड का व्यास करीब 37-58 किलोमीटर था। पृथ्वी से इसकी टक्कर इतनी विनाशकारी थी कि कई चट्टानें भाप और धूल में बदलकर पूरी पृथ्वी पर फैल गईं। टक्कर ने समुद्री तलों को उखाड़ फेंका। ऊर्जा ने वातावरण इतना गर्म कर दिया कि समुद्र की ऊपरी सतह उबलने लगी। धूल बैठने और वातावरण ठंडा होने में कई दशक लगे होंगे।