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पर्यावरणीय समस्याओं व प्रदूषण से निपटने में मददगार हो सकता है ‘हरा सोना’

बैम्बू सिटी Bamboo City परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए सार्वजनिक स्वीकृति और जागरूकता भी जरूरी है। बांस से जुड़ी कुछ गलतफहमियां भी हैं। लोगों को लगता है कि बांस की जड़ें गहरी हो जाती हैं और इमारतों को नुकसान पहुंचाती हैं। यह एक मिथक है। एक और डर यह है कि बांस से आग का खतरा है, लेकिन इस मामले में बांस अन्य लकड़ियों की तरह ही है।

बैंगलोरSep 18, 2024 / 06:22 pm

Nikhil Kumar

-बेंगलूरु को बनाएं बांस शहर : पर्यावरणविद्

-जल संरक्षण, कार्बन उत्सर्जन कम करने में भी इनकी भूमिका अहम

निखिल कुमार.

बेंगलूरु Bengaluru भारी मात्रा में बांस Bamboo लगाकर और रोजमर्रा के निर्माण में इसका इस्तेमाल करके कार्बन उत्सर्जन Carbon Emission को कम कर सकता है। शहर को पहले की तरह हरा भरा कर सकता है। पेयजल की समस्या सहित कई पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने की कोशिश कर सकता है। बैम्बू सोसाइटी ऑफ इंडिया ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है शहर में पर्यावरण संबंधी चिंताओं के समाधान के लिए शहर के एक निजी स्कूल के साथ हाथ मिलाया है। शहर को बैम्बू सिटी के रूप में विकसित कर प्रदूषण के स्तर को कम करने के उद्देश्य से बच्चे बांस के 30 हजार पौधे लगाएंगे।
बांस को अपनाने की जरूरत

बैम्बू सिटी प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने वाली वास्तुकार नीलम मंजूनाथ के अनुसार बेंगलूरु सी40 शहरों के वैश्विक नेटवर्क पर है। यह महानगरों द्वारा 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को कम करने और 2050 तक कार्बन तटस्थता हासिल करने की प्रतिबद्धता है। अगर बेंगलूरु अपनी जलवायु कार्य योजना के तहत अन्य हस्तक्षेपों के साथ-साथ बांस को भी तत्काल अपनाता है तो वह 2030 तक खुद ही कार्बन-तटस्थ बन सकता है।
35 प्रतिशत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित

उनके अनुसार बांस को हरा सोना भी कहा जाता है और इसका एक कल्म (हवाई तना) एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन पैदा कर सकता है। यह अन्य दृढ़ लकड़ी के पेड़ों की तुलना में 35 प्रतिशत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है।
3 मिलियन टन हो सकता है कार्बन उत्सर्जन

बेंगलूरु में 2030 तक लगभग 1.7 लाख नए निर्माण प्रस्तावित हैं। इन परियोजनाओं में 30 फीसदी कंक्रीट और स्टील को बांस से बदलने से कार्बन उत्सर्जन में 3 मिलियन टन की कमी आ सकती है। पर्यावरणविद, नौकरशाह, लकड़ी वैज्ञानिक, आर्किटेक्ट और संबंधित विशेषज्ञ विशेषज्ञ बैम्बू सिटी प्रोजेक्ट सलाहकार समिति का हिस्सा हैं।
चुनौतियां अनेक, समाधान कई

शहर में बांस उगाने की अपनी चुनौतियां हैं। बृहद बेंगलूरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) हर वर्ष एक से दो लाख पौधे लगाना चाहता है, लेकिन जगह की कमी के कारण उनकी परियोजना आगे नहीं बढ़ पा रही है।
कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री, पोन्नमपेट में प्रो. रामकृष्ण हेगड़े के अनुसार वैज्ञानिक सर्वेक्षण के बाद बांस के रोपण के लिए झील के बांध, तूफानी नालों के किनारे के क्षेत्र, और नए लेआउट और पार्कों पर विचार किया जा सकता है।
एक तिहाई से ज्यादा नहीं

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बेंगलूरु शहर में में बांस का आवरण हरित आवरण के एक तिहाई से ज्यादा नहीं होना चाहिए। स्थानीय जैव विविधता को संरक्षित करते हुए इस लक्ष्य तक पहुंचना संभव है। हालांकि, बांस के बागान लगाने के लिए भूमि अधिकार पर बातचीत करना एक बड़ा मुद्दा हो सकता है।
इमारतों को नुकसान नहीं

बैम्बू सिटी Bamboo City परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए सार्वजनिक स्वीकृति और जागरूकता भी जरूरी है। बांस से जुड़ी कुछ गलतफहमियां भी हैं। लोगों को लगता है कि बांस की जड़ें गहरी हो जाती हैं और इमारतों को नुकसान पहुंचाती हैं। यह एक मिथक है। एक और डर यह है कि बांस से आग का खतरा है, लेकिन इस मामले में बांस अन्य लकड़ियों की तरह ही है।
समय ही मांग

बांस उगाना समय की मांग है। बेंगलूरु शहर पानी की कमी से जूझ रहा है और पानी बचाने का यह सबसे अच्छा तरीका है। बांस की खेती करके हम इसे बांस शहर के रूप में फिर से बना सकते हैं।
-ईश्वर खंड्रे, वन, पारिस्थितिकी और पर्यावरण मंत्री

रोचक तथ्य

– बांस, तेजी से बढ़ती घास का प्रकार और ताकत, लचीलापन व पर्यावरण-मित्रता आदि गुणों के लिए प्रसिद्ध है।

-पानी संरक्षण, जमीन का कटाव रोकने, ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाने और अपने औषधीय गुणों के मामले में बांस बेहद फायदेमंद हैं।
-बांस की खेती किसानों को भी आर्थिक रूप से समृद्ध बना सकता है।

-बांस की लकड़ी में लेड के साथ कई अन्य धातु पाई जाती हैं। ऐसे में इसे जलाने पर ये धातुएं ऑक्साइड बना लेती हैं और वातावरण प्रदूषित हो जाती है। लिवर और न्यूरो संबंधी परेशानियों का भी खतरा रहता है।
-बांस अन्य पेड़ों के मुकाबले 35 फीसदी ज्यादा ऑक्सीजन छोड़ता है।

-बांस को उगाने के लिए उर्वरक या कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ती है। बांस अपने ऊपर लगने वाले कीड़ों से खुद निपटता है। पानी की जरूरत भी काफी कम होती है।
-बांस पीपल की पेड़ की तरह दिन में कार्बन डाइऑक्साइड खींचता है और रात में ऑक्सीजन छोड़ता है।

-भारत में बांस की करीब 24 प्रजातियां हैं। कुछ प्रजातियां एक दिन में 121 सेंटीमीटर तक बढ़ सकती हैं।
-एक अनुमान के अनुसार विश्व अर्थव्यवस्था में बांस का योगदान 12 अरब अमरीकी डॉलर से अधिक है।

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