याचिकाकर्ता का कहना हे कि मंदिर परिक्रमा प्रॉजेक्ट के कंस्ट्रक्शन के लिए प्राधिकरण से किसी तरह की कोई NOC नगीं लिया गया है। याचिकाकर्ता के वकील ने निरीक्षण रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि रिपोर्ट में कहा गया है कि साइट पर भारी क्षति हुई है। निरीक्षण के दौरान बताया गया कि निर्माण शुरू होने से पहले हेरिटेज साइट पर कंस्ट्रक्शन से होने वाले प्रभाव के आकलन की अध्ययन की रिपोर्ट नहीं दी गई थी।
तो वहीं जगन्नाथ मंदिर के आसपास सरकार द्वारा खुदाई और निर्माण कार्य के खिलाफ याचिका पर दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया है। इससे पहले उड़ीसा हाईकोर्ट ने मामले में याचिका को खारिज कर दिया था। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने याचिका पर विचार किया, जिसमें उड़ीसा उच्च न्यायालय के 9 मई के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता और व्यवसायी, अपीलकर्ता सुमंत कुमार घदेई द्वारा राज्य को प्रतिबंधित करने से इनकार करते हुए, इसकी तत्काल सूची की मांग की गई थी।
याचिका में कहा गया है कि इसे “आम जनता के हित में और भगवान श्री जगन्नाथ की विरासत की रक्षा के लिए” दायर किया जा रहा है। अधिवक्ता गौतम दास द्वारा प्रस्तुत, घदेई ने अदालत को बताया कि जगन्नाथ मंदिर कॉरिडोर परियोजना के हिस्से के रूप में चल रही खुदाई और निर्माण “प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम (AMASR), 1958 की धारा 20 ए का घोर उल्लंघन है”।
याचिका में कहा गया है कि AMASR अधिनियम की धारा 20A “इस तथ्य के बारे में स्पष्ट है कि स्मारक के निषिद्ध क्षेत्र के 100 मीटर की दूरी के भीतर कोई निर्माण नहीं हो सकता है”, याचिका में कहा गया है। हालांकि, यह इंगित किया गया है कि राज्य कुछ निर्माण करने की कोशिश कर रहा है, जो “मेघानंद पचेरी के पश्चिमी हिस्से से सटे हुए है, जो मंदिर का एक अभिन्न अंग है”।
याचिका में कहा गया है कि मंदिर के परिसर में मेघनाद पछेरी मंदिर के पास 30 फुट गहराई तक खुदाई की गई है। इससे मंदिर की बुनियाद को खतरा हो सकता है, खुदाई करने वाले भारी उपकरण मंदिर के तहखाने / नींव पर दबाव डाल रहे हैं। इसमें कहा गया है कि हालांकि मंदिर की संरचना को नुकसान पहुंचा है, लेकिन उसकी तस्वीरें नहीं बनाई जा सकतीं क्योंकि अधिकारियों ने मोबाइल फोन और अन्य सभी प्रकार की फोटोग्राफी के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है।