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नई दिल्ली

गुरु पूर्णिमा: बात ऐसे गुरु की जिनके शिष्य पूरी दुनिया के प्रकाश स्तंभ बन गए

आज गुरु पूर्णिमा के दिन पर हम कुछ ऐसे गुरुओं के बारे में आपको बताते हैं, जिनके शिष्य पूरी दुनिया के लिए एक प्रकाश स्तंभ बनकर रोशनी फैला रहे हैं।

नई दिल्लीJul 09, 2017 / 11:33 am

ashutosh tiwari

guru purnima special story

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नई दिल्ली: भारतीय शास्त्रों में गुरु को देवता से ऊंची पदवी प्रदान की गई है, क्योंकि गुरु की कृपा से ही भगवान के दर्शन संभव हैं। गुरु के आर्शीवाद से शिष्य जीवन में आने वाली तमाम कठिनाईयों से पल में छुटकारा पा जाता है और दुनिया में गुरु के साथ खुद का और परिवार का नाम रोशन करता है। दुनियाभर में 9 जुलाई को फुल मून डे मनाया जा रहा है, लेकिन संस्कृति प्रधान देश भारत इसे गुरु पूर्णिमा के रुप में मना रहा है। 

आइए इस पवित्र दिन पर हम कुछ ऐसे गुरुओं के बारे में आपको बताते हैं, जिनके शिष्य पूरी दुनिया के लिए एक प्रकाश स्तंभ बनकर रोशनी फैला रहे हैं।
स्वामी विवेकानंद: वसुधैव कुटुम्बकम की अलख जगाने वाले स्वामी विवेकानंद तो महज एक रोशनी थे, प्रकाश पुंज तो इनके गुरु रामकृष्ण परमहंस थे। जिनके ज्ञान ने नरेंद्रनाथ को स्वामी विवेकानंद बना दिया। विवेकानंद को गुरु रामकृष्ण परमहंस ने ही ईश्वर से साक्षात्कार करवाया था। गुरु के कहने पर भी उन्होंने ईश्वर से धन की बजाए ज्ञान और भक्ति मांगी थी। जिसके बदौलत स्वामी जी ने मां काली के दर्शन किए।
महात्मा गांधी: आज पूरी दुनिया मोहनदास करमचंद गांधी को अपना आदर्श मानती है। लेकिन महात्मा गांधी को इस मुकाम पर पहुंचाने के लिए बहुत से गुरुओं का आर्शीवाद और साथ मिला। गांधी को एक सामान्य व्यक्ति से राष्ट्रपति महात्मा गांधी बनाने का श्रेय संत श्रीमद राजचंद्र को जाता है। गांधी को इन्ही से उदारता, आत्मबल और आत्मज्ञान मिला। गांधी भी हमारी तरह एक साधारण इंसान थे, लेकिन उनके असाधारण विचारों और चरित्र के बलबूते ही वो महात्मा कहलाए और इसके पीछे उनके गुरु श्रीमद राजचंद्र का हाथ था। महात्मा गांधी 1922 से 1924 तक यरवदा जेल में थे, तब उन्होंने गुरु श्रीमद के साथ हुए अनुभवों को लिखा। वहीं महान स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ गोपाल कृष्ण गोखले ने महात्मा गांधी राजनीति की पहली पाठशाला दी थी। इसलिए उन्हें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का राजनीतिक गुरु कहा जाता है।
एपीजे डॉ अब्दुल कलाम: मिसाइल मैन और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम युवाओं के सबसे बड़े प्रेरणा स्तंभ हैं। लेकिन कलाम अपने टीचर सुब्रह्मण्यम अय्यर को अपनी प्रेरणा का स्त्रोत मानते थे। डॉ कलाम कहते थे कि सुब्रह्मण्यम अय्यर सर उनको पांचवी कक्षा में पढ़ाते थे। वो हमारे सबसे अच्छे शिक्षकों में से थे। एक बार उन्होंने कक्षा में पूछा कि चिड़िया कैसे उड़ती है? किसी छात्र ने जब इसका उत्तर नहीं दिया तो अगले दिन वो सभी बच्चों को समुद्र के किनारे लेकर गए। वहां कई पक्षी उड़ रहे थे तो कई समुद्र किनारे उतर रहे थे। तब उन्होंने हमें पक्षियों के उड़ने के पीछे की वजह समझायी। इसके साथ ही पक्षियों के शरीर की बनावट को भी बताया जो उड़ने में उनकी सहायता करता है। उस दिन की घटना ने मुझे जिंदगी का लक्ष्य निर्धारित करने की प्रेरणा दी। उनके द्वारा बताई गईं बातें मेरे अंदर इस कदर समा गई कि मुझे हमेशा महसूस होने लगा कि मैं रामेश्वरम के समुद्र तट पर हूं। उसके बाद ही मैंने तय किया कि उड़ान की दिशा में ही अपना करियर बनाऊंगा।
सचिन रमेश तेंदुलकर: बात अगर क्रिकेट के भगवान की करें तो सचिन को सचिन तेंदुलकर बनाने का श्रेय उनके पहले गुरु रमाकांत आचरेकर को जाता है। सचिन ने रमाकांत आचरेकर के नेतृत्व में ही टेनिस बॉल छोड़कर क्रिकेट बॉल से खेलना सीखा। पहली बार समर कैंप में आचरेकर सर के सामने सचिन इतने नर्वस हो गए कि उनका बल्ला ही नहीं चल रहा था। लेकिन आचरेकर सर ने सचिन के अंदर छिपे उस महान क्रिकेटर को पहचान लिया था, जो दुनिया में क्रिकेट के क्षेत्र में नई इबारत लिखने वाला था। सचिन से आचरेकर सर फीस नहीं लेते थे। सचिन ने अपनी आत्मकथा ‘प्लेइंग इट माई वे: माई ऑटोबायोग्राफी’ के दूसरे अध्याय ‘लर्निंग द गेम’ में लिखा है कि आचरेकर सर के कैंप में आकर मैं बहुत खुश था और मैं कहना चाहूंगा कि इस अवसर ने मेरी जिंदगी बदल दी।

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