झरिया के मुख्य चौराहे पर सूर्य देव सिंह की बड़ी प्रतिमा लगी हुई है। यहां से कुछ आगे चाय की दुकान चलाने वाले रोमेश्वर साहू कहने लगे कि सियासत और कोयले से जुड़ा कारोबार कभी अलग हो नहीं सकता। यह चुनाव तो बस अपने रसूख को दिखाने भर का है। जो जीतेगा, कोयला खानों में उसकी ज्यादा चलेगी। दरअसल, साहू ने इशारों में बता दिया कि सिंह परिवार के सदस्य कोयला राजधानी पर रसूख के लिए चुनाव मैदान में उतरे हुए हैं। इस परिवार की आपसी रंजिश के घाव करीब सात साल पहले सिंह परिवार के सदस्य नीरज सिंह की हत्या से गहरे हुए। हत्या के आरोप में नीरज के चचेरे भाई पूर्व विधायक संजीव सिंह जेल में बंद है। दिवंगत नीरज की पत्नी पूर्णिमा नीरज सिंह यहां से विधायक व कांग्रेस उम्मीदवार है। जबकि संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही है। जहां पूर्णिमा नीरज के ‘बलिदान’ होने पर वोट मांग रही है तो उनकी जेठानी रागिनी परिवार के सम्मान को वापस लाने के लिए चुनाव जिताने की अपील लोगों से कर रही है। पान की दुकान चलाने वाले चन्द्रशेखर महतो ने कहा कि अब चुनाव आ गए तो सब शक्ल दिखा रहे हैं। उन्होंने कस्बे की खराब सडक़ दिखाते हुए कहा कि पांच साल किसी ने पूछा नहीं। इसलिए बदलाव भी जरूरी है। ओमप्रकाश पांडे का कहना है कि इस सीट पर राजपूतों के साथ मुसलमानों की संख्या ज्यादा है। हालांकि झारखंड लोकतांत्रिक क्रांति मोर्चा ने मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा कर कांग्रेस की राह में रोडा डाल दिया है।
कौन है सूर्यदेव सिंह
ऐसा बताया जाता है कि 70-80 के दशक में सूर्यदेव सिंह एक ट्रेड यूनियन नेता होने के साथ कथित तौर पर अवैध कोयला व्यापार में शामिल थे। ऐसा माना जाता है कि फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के चरित्र रामाधीर सिंह के पीछे की प्रेरणा सूर्यदेव सिंह ही थे। सूर्यदेव 1977 से लेकर 1991 में अपनी मृत्यु तक झरिया सीट से विधायक रहे। उनकी मृत्यु के बाद यह सीट उनके परिवार से बाहर हो गई। 1999 में उनके भाई बच्चा सिंह ने यह सीट जीती। 2004 में जब झरिया झारखंड का हिस्सा बना, तो सूर्यदेव की पत्नी कुंती सिंह यहां से विधायक बनी। 2014 में उनके बेटे संजीव ने उनके चचेरे भाई पूर्व उप महापौर नीरज को हराकर यह सीट जीती थी। 2017 में संदिग्ध परिस्थितियों में नीरज और उनके दो अंगरक्षकों की गोलियां मारकर हत्या कर दी गई, जिसका आरोप संजीव पर लगा।
वासेपुर में दिख रहा बदलाव
धनबाद शहर का हिस्सा हो चुके वासेपुर का नाम आते ही गैंग्स ऑफ वासेपुर जेहन में आ जाता रहा है। इसके चलते खून, खराबा, रंगदारी जैसे शब्द सामने आते हैं। हालांकि जब मैं यहां पहुंचा तो ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला, लेकिन यहां गेंगे अब भी काम करती है, जिनका काम करने का तरीका बदल चुका है। वहीं चुनावी माहौल में यहां कुछ कार्यकर्ता चुनाव की पर्चियां बांटते दिखे। मिठाई की दुकान चलाने वाले जाफर शाह ने कहा कि गैंग्स चलना सब पुराने जमाने की बातें हैं। कोयला यहां का हीरा है, जिसके कारोबार में हर धर्म और वर्ग के लोग जुड़े हैं। लेकिन अब हत्या, रंगदारी जैसा कुछ नहीं है। बच्चे पढ़ रहे हैं तो बड़े काम-धंधों में लगे हुए हैं। रात 11 बजे भी यहां लोग बेखौफ आते-जाते दिखेंगे।