अफ्रीकी व अन्य देशों से डीजल रेज इंजन की डिमांड से बनारस के कारखाने की कमाई भी हो रही है। वर्ष 2015-16 से अगस्त 2021 तक 171 डीजल रेज इंजनों के निर्यात से कारखाने को 1407 करोड़ रुपये मिले हैं। दुनिया के कई देशों से कुछ अन्य पार्ट्स बनाने की भी डिमांड बनारस रेल इंजन कारखाने को मिलती है।
98 प्रतिशत स्वदेशी सामानों का उपयोग
बनारस रेल इंजन कारखाने में लोकोमोटिव उत्पादन में 98 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामानों का इस्तेमाल होता है। जिससे देश के एमएसएमई सेक्टर को भी बढ़ावा मिल रहा है। 2020-21 में कारखाने ने 3000 करोड़ रुपये की खरीद की थी, जिसमें 670 करोड़ रुपये के सामान एमएसएमई से जुड़े रहे। बनारस रेल इंजन कारखाने की आधारशिला 23 अप्रैल 1956 को प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने रखी थी और 3 जनवरी, 1964 को लाल बहादुर शास्त्री ने प्रथम डीजल-विद्युत लोकोमोटिव के निर्माण को देश को समर्पित किया था। तब से अब तक इस कारखाने ने भारतीय रेलवे के लिए 8307 डीजल और 967 विद्युत रेल इंजनों का निर्माण किया है।
देश रेल इंजन का निर्यात
बांग्लादेश 49
श्रीलंका 30
मलेशिया 01
तंजानिया 15
वियतनाम 25
म्यांमार 29
सूडान 08
सेनेगल 03
अंगोला 03
माली 01
मोजांबिक 07