संस्कृत दिवस मनाने का उद्देश्य
22 अगस्त 2021 को पूरी दुनिया संस्कृत दिवस मना रही है। इसके मनाने का उद्देश्य यही है कि इस भाषा को और अधिक बढ़ावा मिले। भारत की नई पीढ़ी के लोगों में संस्कृत के प्रति रुझान लगभग खत्म होता जा रहा है। वहीं विदेशों में संस्कृत के प्रति गहरा लगाव हो रहा है। आज के युवाओं को लगता है कि संस्कृत भाष काफी पुराने जमाने की भाषा है। इसको बोलने और पढ़ने में आज के लोग शर्माते है। ऐसे लोगों की सोच को बदलने के लिए विश्व संस्कृत दिवस मनाया जा रहा है। विश्व संस्कृत दिवस सब पहले 1969 में मनाया गया था।Raksha Bandhan Rangoli Design : राखी पर ये आसान और खूबसूरत रंगोली बनाकर घर को सजाएं
विश्व संस्कृत दिवस का इतिहास
भारत में संस्कृत भाषा की उत्पत्ति करीब 4 हजार साल पहले हुई। हिंदू धर्मग्रंथों में संस्कृत के मंत्रों को उपयोग हजारों वर्षों से किया जा रहा है। भारत में सर्वप्रथम वेदों की रचना 1000 से 500 ईसा पूर्व की अवधि में हुई थी। वैदिक संस्कृति में ऋग्वेद, पुराणों और उपनिषदों का अत्यधिक महत्व है। वेद चार खंडों में विभाजित है, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इसी तरह कई कई पुराण, महापुराण और उपनिषद भी संस्कृत से संबद्ध हैं।
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संस्कृत भाषा की उत्पत्ति
यह सबसे पुरानी इंडो-यूरोपीय भाषाओं में से एक है। कम लोगों को पता है कि संस्कृत भाषा में करीब 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्दों की विश्व में सबसे बड़ी शब्दावली है। संस्कृत सबसे अधिक कम्प्यूटर के अनुकूल भाषा है। कर्नाटक में एक ऐसा गांव है जहां हर कोई संस्कृत में बात करता है। गांव का नाम शिमोगा जिले के मत्तूर है। संस्कृत को उत्तराखंड की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया है। शास्त्रीय संगीत में, जो कर्नाटक और हिंदुस्तानी में है, संस्कृत का प्रयोग किया जाता है।