टैक्स आय पर नहीं बल्कि निवेश पर था
डीपीआइआइटी सचिव ने कहा कि यह कारोबार सुगमता का मुद्दा होने के साथ-साथ टैक्स का मुद्दा भी था। आखिरकार यह आय पर नहीं बल्कि निवेश पर टैक्स था और निवेश पर टैक्स नहीं लगना चाहिए, यही मूल विचार है। एंजल टैक्स (30त्न से अधिक की दर से आयकर) का मतलब वह टैक्स है जो सरकार गैर-सूचीबद्ध कंपनियों या स्टार्टअप की ओर से जुटाई गई धनराशि पर लगाती है, अगर उनका मूल्यांकन कंपनी के उचित बाजार मूल्य से अधिक है। उन्होंने कहा, इस फैसले से विवाद तथा मुकदमेबाजी में भी कमी आएगी। इसके अलावा टैक्स निर्धारण और मुकदमेबाजी में उलझी मांग में भी कमी आएगी।
नुकसान पहुंचा रहा था टैक्स
उन्होंने कहा, निवेशक संभावित नए इनोवेशन पर निवेश करता है और यह टैक्स उन्हें नुकसान पहुंचा रहा था। एंजल टैक्स के चलते भारत में एक वास्तविक रूप से अच्छे विचार को समर्थन नहीं मिल रहा था और यह लोगों को विदेश से पैसा लगाने के लिए मजबूर कर रहा था। इससे भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) में गिरावट आ रही थी। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि एंजल टैक्स खत्म होने से भारतीय स्टार्टअप में निवेश आकर्षित करने और उभरते उद्यमियों की वृद्धि को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
कारोबारियों ने किया फैसले का स्वागत
फोनपे के मुख्य वित्तीय अधिकारी आदर्श नाहटा ने कहा, भारत में एंजल टैक्स खत्म किया जाना स्वागतयोग्य बदलाव है, जो स्टार्टअप के पारिस्थितिकी तंत्र में नई जान फूंक सकता है। सरकार का यह दूरदर्शी कदम अनुपालन बोझ को कम करने वाला, निवेश आकर्षित करने वाला और ऐसा माहौल तैयार करने वाला है, जहां स्टार्टअप वास्तव में फल-फूल सकती हैं। वहीं वेंचर कैपिटल फंड 3वन4 कैपिटल के संस्थापक साझेदार सिद्धार्थ पाई के अनुसार, इस विवादास्पद टैक्स को हटाया जाना निवेशकों के लिए बड़ी जीत है। उन्होंने कहा कि अब पूंजी जुटाने वाली कंपनियों को एंजल टैक्स के खतरे का सामना नहीं करना पड़ेगा।
इकनी आई फंडिंग में गिरावट
बाजार पर नजर रखने वाले प्लेटफॉर्म ट्रैक्सन ने कहा कि साल 2023 के दौरान भारतीय स्टार्टअप क्षेत्र की फंडिंग में पिछले साल की तुलना में 72 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है और यह पिछले साल जुटाई गई 25 अरब डॉलर की राशि की तुलना में सात साल के निचले स्तर 7 अरब डॉलर पर आ गई है।
क्या है एंजल टैक्स
साल 2012 में शुरू किए गए एंजल टैक्स के प्रावधानों का उद्देश्य टैक्स से बचने वाले निवेशकों पर नकेल कसना और फंड का दुरुपयोग रोकना था। इसे एंजल टैक्स इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह स्टार्टअप में एंजल निवेश को खासा प्रभावित करता है। शुरू में यह स्थानीsय निवेशकों के लिए लागू किया था, लेकिन बाद में इसका दायरा बढ़ा दिया गया था।