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व्हीलचेयर पर चलने वाला Prateek Khandelwal कौन है जिन्होंने दिव्यांगों और दृष्टिहीनों की जिंदगी बनाई आसान, जानिए उन्होंने क्या किया?

दुनिया में एक अनुमान के अनुसार करीब 15 फीसदी लोग किसी न किसी दिव्यांगता के साथ जी रहे हैं। प्रतीक खंडेलवाल ने उनकी जिंदगी आसान बनाने के लिए बेहद शानदार काम किया है और समाज के लिए मिसाल पेश की है।

बैंगलोरJul 14, 2024 / 10:01 am

स्वतंत्र मिश्र

Prateek Khandelwal

Prateek Khandelwal

सरकारी दफ्तर, अस्पताल या अन्य सार्वजनिक स्थलों पर दिव्यांगों को चढ़ने में कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। बेंगलूरु के प्रतीक खंडेलवाल (Prateek Khandelwal, Founder, Ramp My City) ऐसे लोगों के जीवन में उम्मीद बनकर उभरे हैं। वह बेंगलूरु, गोवा, गुड़गांव और मुंबई सहित कई शहरों के सार्वजनिक स्थानों पर 530 से ज्यादा रैंप (Ramp) बनवा चुके हैं। दरअसल, 2014 में एक हादसे में वह निर्माणाधीन इमारत से गिरने के कारण उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट आ गई जिससे वह व्हीलचेयर पर आ गए। इस दौरान उन्हें पुलिस स्टेशन, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड आदि सार्वजनिक स्थानों पर चढऩे में काफी परेशानी हुई। इसके बाद उन्होंने दिव्यांगों की मदद के लिए छोटा रैंप बनाने को जीवन का लक्ष्य बना लिया ताकि ऐसे लोगों को मदद के लिए हाथ नहीं फैलाना पड़़े।

प्रतीक सरकार के साथ मिलकर काम को बढ़ा रहे हैं आगे

2020 में उन्होंने अपना स्टार्टअप रैंपमाइसिटी शुरू किया। अब वह सरकार और कई कॉर्पोरेट्स के साथ मिलकर इस कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं। अब वह रेस्तरां, सरकारी कार्यालय, पुसि स्टेशन, अस्पताल, शिक्षा संस्थान, बैंक, पार्क और व्यावसायिक स्थानों पर लोहे का रैंप लगाने में मदद कर रहे हैं। अब तक 530 रैंप बनवा चुके हैं।

रैंप माय सिटी के संस्थापक हैं प्रतीक

प्रतीक ने रैंप माय सिटी नाम की संस्था भी बनाई है जिसके जरिए वह इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं। वह बेंगलुरू में रहते हैं। प्रतीक मोटीवेशनल स्पीकर भी हैं। वह विश्व बैंक के साथ कई कॉरपोरेट्स संगठनों में वक्तव्य दे चुके हैं। उनका कहना है कि विकलांगता की परवाह नहीं करनी चाहिए बल्कि इस सोच के साथ जीना चाहिए कि हर किसी में एक विशेष प्रतिभा होती है।

दुनिया में 15 फीसदी दिव्यांगजनों की आबादी

WHO और विश्व बैंक के अनुसार, हर देश की लगभग 15% आबादी किसी न किसी रूप में ​दिव्यांगता के साथ जी रही है। इसका मतलब यह है कि भारत में कम से कम 13 से 15 करोड़ लोग किसी न किसी दिव्यांगता के साथ जी रहे हैं।

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