उम्मीदवारी रद्द करने की मांग
कई दिनों से लगातार उनके खिलाफ क्षत्रिय समाज नाराजगी जता रहा है, विरोध प्रदर्शन कर रहा है, कलक्टर को ज्ञापन सौंप रहा है, यहां तक कि उनकी उम्मीदवारी रद्द करने की मांग पर अड़ा हुआ है। वे राजपूत समाज के बड़े लोगों से मिल रहे हैं और माफी मांग रहे हैं। भाजपा के लिए ऐसी स्थिति पिछले कई लोकसभा चुनाव में नहीं देखने को मिली। कुछ भाजपा नेताओं ने अपना इस्तीफा भी सौंप दिया। गुजरात के भाजपा अध्यक्ष सी आर पाटील तक को क्षत्रिय समाज के लोगों के साथ बैठक करनी पड़ी लेकिन इसका कोई ज्यादा असर नहीं दिखा। इसे लेकर उम्मीदवारी के विरोध को देखते हुए निवर्तमान सांसद मोहन कुंडारिया के डमी उम्मीदवार के रूप में उतारे जाने की चर्चा जोरों पर है।
भाजपा का प्रभाव
अमरेली जिले के मूल निवासी रूपाला को राजकोट की सीट पर उतारना थोड़ा आश्चर्यजनक लगा था। यह सीट भाजपा का गढ़ है। हालांकि इस सीट पर 2009 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी लेकिन तब के विजेता कुंवरजी बावलिया अब भाजपा के हो गए हैं। लेउवा पाटीदार बहुल इस सीट पर पार्टी ने कड़वा पाटीदार प्रत्याशी को मैदान में उतारा है।
रूपाला ने पहली बार 1991 में अमरेली से दर्ज की जीत
अमरेली जिले से भाजपा पदाधिकारी के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले रूपाला ने पहली बार वर्ष 1991 के विधानसभा उपचुनाव में अमरेली सीट से जीत दर्ज की। इसके बाद वे 1995 और 1998 की विधानसभा चुनाव में जीते। तीन बार विधायक बनने के दौरान वे पहले केशू भाई पटेल की सरकार में मंत्री बने और बाद में नरेंद्र मोदी के सरकार में 2001-2002 में कृषि मंत्री भी बने। 2002 के विधानसभा चुनाव में वे कांग्रेस के परेश धनाणी से हार गए।
उम्मीदवारी पर संशय दूर हो
12 अप्रेल से गुजरात में लोकसभा चुनाव को लेकर नामांकन भी शुरू होने वाले हैं। उधर कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार तक घोषित नहीं किया है। भाजपा को यह निर्णय लेना होगा कि राजकोट सीट पर पार्टी के उम्मीदवार रूपाला ही रहेंगे या कोई दूसरा।