उपराष्ट्रपति ने कृषि मंत्री से पूछा कि किसानों से कोई वादा किया गया था तो उसे क्यों नहीं निभाया गया? हम क्या कर रहे हैं, वादा पूरा करने के लिए? पिछले साल भी आंदोलन था, इस साल भी आंदोलन है। समय जा रहा है, लेकिन हम कुछ नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा, आज सरदार पटेल की याद आती है, उनका जो उत्तरदायित्व था देश को एकजुट करने का, उन्होंने इसे बखूबी निभाया। यह चुनौती आज कृषि मंत्री के सामने है। इसे भारत की एकता से कम मत समझिए। किसान से वार्ता तुरंत होनी चाहिए और सबको यह जानना चाहिए कि क्या पिछले कृषि मंत्रियों ने कोई लिखित वादा किया था? अगर किया था, तो क्या हुआ?
फिर किसान परेशान क्यों?
धनखड़ ने कहा कि यह बहुत संकीर्ण आकलन है कि किसान आंदोलन का मतलब केवल वे लोग हैं जो सडक़ों पर हैं। किसान का बेटा आज अधिकारी है, कर्मचारी है। उन्होंने कहा कि मैंने पहली बार भारत को बदलते हुए देखा है। महसूस हो रहा है कि एक विकसित भारत सिर्फ हमारा सपना नहीं, यह हमारा लक्ष्य है। भारत कभी इतनी ऊंचाई पर नहीं था। जब ऐसा हो रहा है तो मेरा किसान क्यों परेशान है? वह क्यों पीड़ित है? धनखड़ ने कहा कि किसान और उनके हितैषी आज चुप हैं, बोलने से कतराते हैं। देश की कोई ताकत किसान की आवाज को दबा नहीं सकती।