केंद्र ने पेश किया हलफनामा, कहा- मौजूदा कानून में पर्याप्त उपाय
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से गुरुवार को यह हलफनामा उन याचिकाओं के जवाब में पेश किया गया जिनमें वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग की गई है। केंद्र ने यह स्वीकार किया कि विवाह में पति को अपनी पत्नी को उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने का अधिकार नहीं है लेकिन बलात्कार विरोधी कानूनों के तहत किसी व्यक्ति को ऐसे कृत्य के लिए दंडित करना अत्यधिक और असंगत हो सकता है। उल्लेखनीय है कि इस मुद्दे पर दिल्ली हाईकोर्ट का विभाजित फैसला आने के बाद सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है।
पहले से है महिला को अधिकार
हलफनामे में कहा गया है कि संसद ने पहले ही विवाहित महिला की सहमति की रक्षा के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। इनमें पूर्व आइपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता, महिलाओं के शीलभंग पर दंड और घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण का कानून जैसे उपाय शामिल हैं। यौन पहलू पति और पत्नी के बीच संबंधों के कई पहलुओं में से एक है, जिस पर विवाह की नींव टिकी है। विवाहित महिला और उसके पति के संबंध के मामले को अन्य मामलों की तरह नहीं देखा जा सकता। विभिन्न परिस्थितियों में यौन दुर्व्यवहार के दंडात्मक परिणामों को अलग-अलग तरीके से वर्गीकृत करना विधायिका के अधिकार क्षेत्र में है।