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बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, पिता की जाति के आधार पर ही वैध होगा बेटे का जाति प्रमाण पत्र

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि एक व्यक्ति का वैध जाति प्रमाण पत्र उनके पितृसत्तात्मक यानी रिश्तेदार की सामाजिक स्थिति के निर्णायक प्रमाण के रूप में होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक दस्तावेज जो एक व्यक्ति के लिए निर्णायक सबूत के रूप में है वह किसी अन्य व्यक्ति की सामाजिक स्थिति के निर्णायक प्रमाण के रूप में भी उपयुक्त है।

Apr 04, 2022 / 10:38 am

धीरज शर्मा

Bombay High Court Decision Son Caste Certificate Valid On Basis Of Father's Caste

Bombay High Court Decision Son Caste Certificate Valid On Basis Of Father’s Caste

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि एक व्यक्ति का वैध जाति प्रमाण पत्र पितृसत्तात्मक यानी उनके रिश्तेदार की सामाजिक स्थिति के निर्णायक प्रमाण के रूप में होगा। दरअसल बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में ठाणे निवासी भरत तायडे की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान ये फैसला दिया। उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी भी व्यक्ति का वैध जाति प्रमाण पत्र उसके पिता के जाति के आधार पर ही होगा। जस्टिस एसबी शुक्रे और जीए सनप की खंडपीठ ने ये फैसला सुनाया। बता दें कि, पितृसत्तात्मक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमें जीवन के हर क्षेत्र के संबंध में फैसला लेने का एकमात्र अधिकार पुरुषों को होता है।

कोर्ट ने क्या दिया तर्क?

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि, भारत में ज्यादातर परिवार पितृसत्तात्मक पैटर्न का पालन करते हैं यानी ज्यादातर परिवार में पिता की जाति और संस्कारों के आधार पर ही बच्चे का पालन पोषण होता आया है। जिसे देखते हुए किसी भी व्यक्ति की जाति उसके पिता की जाति या जनजाति से संबंधित माना जाना चाहिए।

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अदालत के मुताबिक, एक ही परिवार के दो भाईयों की जाति एक ही होगी। वह चाहें तो दास्तवेज में अपनी मां या अन्य किसी के आधार पर प्रमाण पत्र नहीं बनवा सकतें।

जाति जांच समितियों को कोर्ट की चेतावनी

कोर्ट ने प्रदेश में जाति जांच समितियों को कोर्ट के आदेशों की अवहेलना नहीं करने की भी चेतावनी दी। इसके साथ ही ये भी कहा कि अगर प्रमाण पत्र बनाने वाली ऐसी समिति हाई कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करती पाई गई तो भविष्य में गंभीर कार्रवाई भी की जा सकती है।

कोर्ट ने कहा, ‘हम यह स्पष्ट करते हैं कि, भविष्य में अगर यह हमारे संज्ञान में आता है कि इन निर्देशों का किसी भी जांच समिति की ओर से पालन नहीं किया गया है, तो यह न्यायालय किसी भी जांच समिति की ओर से किए गए उल्लंघन पर गंभीरता से विचार करेगा।’

बता दें कि, हाईकोर्ट ने ठाणे निवासी भरत तायडे की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश पारित किया। तायड़े के जाति प्रमाण पत्र को दूसरी बार अमान्य कर दिया गया। इससे पहले, 2016 में, एचसी ने जांच समिति को अनुसूचित जनजाति, टोकरे कोली होने के अपने दावे पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया था।

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