13 महीने पुरानी एनडीए सरकार के खिलाफ लोकसभा में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर बहस चल रही थी तब 17 अप्रैल 1999 को लोकसभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने अपने भाषण के दौरान यह बात कही- लोग चाहते हैं हमारी सरकार चाले। लोग चाहते हैं हमें सेवा करने का आगे मौका मिले और मुझे विश्वास है कि यह सदन इसी के पक्ष में फैसला करेगा। मगर सदन ने फैसला उनकी सरकार के खिलाफ दिया और महज 1 वोट से वाजपेई की सरकार गिर गई। आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के जन्मदिन के मौके इस कहानी के हर पहलू को जानते हैं|
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अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति क्यों पैदा हुई- साल 1996 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के जाने के बाद देश के सियासत में काफी उथल-पुथल मचा। 1996 से लेकर 1998 की शुरुआत तक देश तीन प्रधानमंत्रियों को देख चुका था। इस दौरान 13 दिन के लिए अटल बिहारी वाजपेई की देश के पीएम बने। साल 1998 के आरंभ के साथ ही देश मध्यावधि चुनाव के मुहाने पर फिर से आ खड़ा हुआ था। 16 फरवरी से 28 फरवरी के बीच तीन चरणों में संपन्न हुए चुनाव में किसी पार्टी को फिर से बहुमत नहीं मिला। इस चुनाव में बीजेपी 182 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी ने शिवसेना, अकाली दल, समता पार्टी, एआईएडीएमके और बीजू जनता दल के सहयोग से सरकार बनायी। अटल बिहारी वाजपेई फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए। तमिलनाडु की पार्टी एआईएडीएमके एनडीए का हिस्सा थी, जो हो तब राज्य की सत्ता से बाहर थी।
बहुमत साबित करने के दिन यानी 17 अप्रैल 1999 की सुबह कांग्रेस नेता शरद पवार ने मायावती से मिलकर बीजेपी की रणनीति को चित कर दिया संसद में पूरे दिन बस चलती रही और आखिर में शाम तक बाद वोटिंग पर पहुंची तब तक सभी गया लग रहा था कि वाजपेई की सरकार इस बाधा को पार कर लेगी मगर वोटिंग के बाद जमीन पर चमके नतीजे ने पूरे देश को हतप्रभ कर दिया| स्पीकर जीएमसी बालयोगी ने घबराए आवाज में कहा- आएय 269, नोज 270 । इसी के साथ NDA और अटल बिहारी वाजपेई की 13 महीने की पुरानी सरकार गिर गई।
कौन था वो सांसद
इसके बाद बहुत श्री आखिर वो एक वोट किसका था, कौन था वह सांसद जिसके संसद में दबाए लाल बटन ने अटल बिहारी वाजपेई सरकार कि 13 महीने पुरानी सरकार को गिरा दी| तब ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री गिरधर गमांग का नाम सामने आया। हालांकि कुछ राजनीतिक एक्सपर्ट का मानना था कि यह एक वोट नेशनल कांफ्रेंस के सांसद सैफुद्दीन सोज का था। सोज ने पार्टी के व्हिप खिलाफ जाकर एनडीए के विरुद्ध वोट दिया था। अगले दिन फारुख अब्दुल्ला ने सोज को पार्टी से निकाल दिया था।
बात साल 2015 की है, जब गिरधर गमांग ने कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी के साथ जाने का फैसला किया| तब उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे इस्तीफे की चिट्ठी में लिखा था, 1999 में लोग मुझे अटल सरकार गिराने का जिम्मेदार मानते हैं, पर पार्टी इस पर मेरे साथ कभी नहीं खड़ी दिखी।