जलग्रहण एरिया के साथ जलबंध एरिया में हुए पक्के निर्माणों ने राजस्थान में रोका पानी
नागौर•Jan 03, 2024 / 10:18 pm•
Sharad Shukla
Illegal occupation of government land Illegal occupation of government and pond land Rajasthan Patrika Nagaur
पिछले आठ से दस सालों के दौरान हुए अधाधुंध निर्माण के चलते तालाबों का जलबंध एरिया हो चुका है गायब
-कार्रवाई नहीं होने से स्थिति हो रही खराब, जानने के बाद भी कार्रवाई नहीं कर रहे अधिकारी
नागौर. नागौर जिले में जलबंध एरिया पर हुए पक्के निर्माणों की वजह से स्थिति बिगडऩे लगी है। जानकारों की माने तो जिले में पंद्रह हजार से ज्यादा हुए पक्के निर्माणों के कारण जलबंध एरिया पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। इसके कारण प्रमुख तालाबों का न केवल दायरा लगभग खत्म हो गया है, बल्कि अब इन प्राकृतिक जलस्रोतों का वजूद भी संकट में पड़ गया है। हालात इतने खराब होने के बाद भी कार्रवाइयों की स्थिति नगण्य रहने के कारण अब प्राकृतिक जसस्रोतों के पूरी तरह से खत्म होने के साथ ही इनका जलीय ढांचा भी अब बिगड़ चुका है।
जिले के जलग्रहण एरिया में पिछले कुछ वर्षों से न केवल पक्के निर्माण हुए हैं, बल्कि जलबंध एरिया में भी व्यापक स्तर पर अतिक्रमण कर लिए गए हैं। राजनीतिक हडक़ एवं जमीन पर कब्जा करने की होड़ ने जिले के जलग्रहण एरिया को लगभग लुप्तप्राय कर दिया है। कई जगहों पर इसकी वजह से न केवल कई तालाब समाप्त हो चुके हैं, बल्कि जल संकट भी बढ़ गया है। तालाब के साथ नदी एवं झील क्षेत्रों की भी यही स्थिति हो गई है। प्रमुख तालाब एरिया के आसपास के साथ ही इनको समाप्त कर इनके मूल स्वरूप पर अतिक्रमणकारियों ने जमकर कैंची चलाई है। स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तलाश करने के बाद भी अब यह जलबंध एरिया कहीं पर भी नजर नहीं आता है। इसके बाद भी जिला प्रशासन की ओर से इस पर अब तक कोई यथोचित कदम भी आज तक नहीं उठाया जा सका। मामले में अपवाद नागौर में पूर्व रहे जिला कलक्टर समित शर्मा के कार्यकाल का जरूर रहा है। कलक्टर के तौर पर शर्मा ने जलग्रहण एरिया से अतिक्रमण हटाए जाने की कार्रवाई की थी, लेकिन इसके चलते हुए उनके स्थानांतरण के बाद फिर से ऐसे स्थानों पर कब्जे हो गए।
प्रमुख तालाबों का यह रहा रहा हाल
जड़ा, तालाब, बख्तासागर, प्रताप सागर, दुलाया, लाल सागर, समस तालाब, गांछोलाई, जाजोलाई नाडी, गिनाणी तालाब, कृषि मंडी के निकट स्थित तालाब की पाल पर ही विधि विरुद्ध पक्के निर्माण कर लिए गए। इस पर हुए अवैध पक्के निर्माणों के स्थिति की पूरी जानकारी जिला प्रशासन को भी है। प्रशासनिक अधिकारी भी स्वीकारते हैं कि अतिक्रमण तो है, लेकिन हटाने की कार्रवाई के नाम पर जल्द ही अभियान चलाएंगे की बात कहकर इतिश्री कर लेते हैं।
जलग्रहण एरिया पक्के निर्माणों की संख्या पंद्रह हजार पार
शहर के बासनी रोड स्थित जाजोलाई नाडी की जमीन व इसके कैचमेंट एरिया में करीब सौ से डेढ़ सौ पक्के निर्माण, डेह रोड के साथ थाम्बोलाई नाडी की जमीन पर भी इसी तरह के निर्माण किए जा चुके हैं। गिनाणी तालाब भी इससे अछूता नहीं रहा है। यहां कैचमेंट एरिया में बताते हैं कि पक्के निर्माणों की संख्या तीन हजार पार कर गई है। इसके साथ ही समस तालाब, जड़ा तालाब, कृषि मंडी के निकट तालाब एरिया, जड़ा तालाब, लालसागर, गांछोलाई, बच्चाखाडा जलबंध एरिया व मूल जगहों पर अतिक्रमण पक्के निर्माण की संख्या पंद्रह हजार से ज्यादा बताई जाती है। इसके बाद भी कार्रवाई के नाम पर स्थिति औसत भी नहीं रही है। सूत्रों की माने तो 56 से ज्यादा जगहों पर तो प्रशासनिक जांच में अतिक्रमण मिलने के बाद भी अतिक्रमण नहीं हटाया जा सका है।
प्रशासनिक कार्रवाई या खानापूर्ति
प्रदेश के विभिन्न जिलों में कार्रवाई की स्थिति जहां नगण्य रही है, वहीं नागौर की स्थिति से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जलग्रहण एरिया में होने वाले अतिक्रमण के खिलाफ प्रशासनिक रवैया हमेसा शिथिलतापूर्ण ही रहता है। बताते हैं कि तीन से चार साल पहले तहसीलदार की रिपोर्ट मिलने के बाद तत्कालीन एसडीएम दीपांशु सांगवान ने जिला कलक्टर को पत्र लिखकर शहर के जड़ा, तालाब, बख्तासागर, प्रताप सागर, दुलाया, लाल सागर, समस तालाब, गांछोलाई, मुंदोलाव नाडी, गिनाणी तालाब, कृषि मंडी के पश्चिम दिशा में स्थित नाडी की आड व अंगोर भूमि पर किए गए विधि विरुद्ध अतिक्रमणों की उच्च स्तरीय जांच करवाने की मांग की थी। एसडीएम के पत्र पर तत्कालीन कलक्टर दिनेश कुमार यादव ने उपखंड अधिकारी की अध्यक्षता में नगर परिषद आयुक्त व तहसीलदार की तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर 15 दिन में रिपोर्ट मांगी थी। आज तक इस जांच रिपोर्ट का क्या रहा, इसकी जानकारी खुद यहां के प्रशासनिक अधिकारियों को ही नहीं है। इसी से जलग्रहण एरिया में प्रशासनिक रवैये की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
क्या कहते हैं पर्यावरणविद्
जलग्रहण एरिया में हुए अवैध निर्माणों को हटाने के लिए प्रशासनिक शिथिलता के कारण गंभीर व दूरगामी परिणाम अभी से नजर आने लगे हैं। परंपरागत जलस्त्रोत्रों का अस्तित्व खत्म होने के साथ ही पर्यावरण का पूरा चक्र प्रभावित हुआ है। भांभू ने कहा कि सरकार को इस पर गंभीरता से कार्रवाई करनी चाहिए, नहीं तो फिर हालात बेहद कठिन होने के साथ ही पानी का वजूद भी समाप्त हो जाएगा।
हिम्मताराम भांभू, पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरणविद
एक्सपर्ट व्यू की नजर में
जलबंध एरिया बढ़ाने के लिए राज्य सरकार के द्वारा बनायी गई कमेटी की रिपोर्ट को समय समय पर प्रस्तुत किया जाता है लेकिन संवेदनशीलता व जन भावना को देखते हुए कई बार अमल नहीं हो पाता है साथ ही साथ कोर्ट ने तथा समितियों ने जोजो नियम क़ानून जल संरक्षण के लिए किए हैं उनकी समय पर क्रियान्वयन किया जाना उचित रहेगा जिससे हम सतत् जल का उपयोग कर पाएंगे
डॉ विकास पावडिया, असिस्टेंट प्रोफेसर, कृषि अर्थशास्त्र, कृषि महाविधालय नागौर, कृषि विश्वविधालय जोधपुर
इनका कहना है…
जलग्रहण एरिया व कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण की स्थिति पर अभी कुछ नहीं कह सकता हूं। इस संबंध में जानकारी लेने के बाद ही सही वस्तुस्थिति बता पाऊंगा।
रामेश्वर गढ़वाल, तहसीलदार नागौर
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