प्रशासन की जिम्मेदारी
रास्ते की जमीन पर अतिक्रमण मानकर कोर्ट ने दुकानें हटाने का आदेश दिया था। यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह आदेश की पालना करवाए।
संत भागीरथराम, राम स्नेही रामद्वारा नागौर
नागौर नगर परिषद ने ताक पर रखे उच्च न्यायालय के आदेश,कार्रवाई के नाम पर हो रही नोटिस की औपचारिकता, सतर्कता समिति में भी दर्ज हो चुका है प्रकरण।
नागौर•Oct 24, 2017 / 10:53 am•
Dharmendra gaur
encroachment in nagaur
नागौर. रास्ते की जमीन पर अतिक्रमण कर बनाई गई दुकानों को हटाने के आदेश की पालना में नगर परिषद महज नोटिस-नोटिस का खेल कर रही है। शहरी सरकार निजी स्वार्थों के चलते उच्च न्यायालय के आदेशों की धज्जियां उड़ा रही है। गौरतलब है कि जोधपुर उच्च न्यायालय ने रास्ते की जमीन पर बनी दुकानें हटाने के निर्देश दिए थे। निर्माण के बरसों बाद भी नगर परिषद ने अतिक्रमण नहीं हटाए। गत 11 जुलाई 2017 को राजस्थान नगर पालिका अधिनियम 2009 की धारा 245 के तहत अतिक्रमण हटाने का नोटिस जारी किया है, लेकिन आज तक कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ।
आखिर क्या है पूरा मामला
नौ साल पहले तत्कालीन नगरपालिका अतिक्रमी को नोटिस देकर कार्रवाई करना ही भूल गई। नगर परिषद के पिछले बोर्ड ने उच्च न्यायालय के आदेश की अनुपालना मेंं 19 नवम्बर 2014 की बैठक में दुकानें हटाने का प्रस्ताव लेकर 07 अक्टूबर 2015 को अतिक्रमी को अंतिम नोटिस भेजा। कोर्ट के आदेश को दरकिनार कर 28 अपे्रल 2016 को नए बोर्ड बैठक में दुकानों को परिषद की सम्पति दर्ज कर नियमानुसार किराया निर्धारित कर शर्तों के साथ दुकानें किराये पर देने का प्रस्ताव ले लिया गया। इस संबंध में जिला स्तरीय सतर्कता समिति में भी प्रकरण दर्ज है।
कोर्ट ने खारिज की थी अपील
परिषद द्वारा जब्त सामग्री का मुआवजा दिलाने की मांग को लेकर रामद्वारा की ओर से चेतनराम ने अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश(कनिष्ठ खंड) एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग मे सामान व स्थायी निषेधाज्ञा के लिए वाद प्रस्तुत किया। 2004 में कोर्ट ने अपील खारिज कर दी। इसके बाद वादी ने निर्णय के विरूद्ध अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश के समक्ष अपना पक्ष रखा। न्यायालय ने 22 जुलाई 2006 के निर्णय में अधीनस्थ न्यायालय के 12 अप्रेल 2004 के निर्णय को उचित मानते हुए वादी की अपील अस्वीकार कर दी। उच्च न्यायालय ने भी 5 दिसम्बर 2008 को वादी की अपील खारिज कर दी।
माना अतिक्रमण, कार्रवाई से गुरेज
उच्च न्यायालय के निर्णय के मद्देनजर नगर पालिका ने 6 अगस्त 2004 व बाद में 26 अगस्त 2006 को चेतनराम को भेजे नोटिस में कहा कि अतिक्रमण हटाकर पालिका को लिखित में सूचित करें अन्यथा पालिका द्वारा अवैध अतिक्रमण तीन दिन मे हटा दिया जाएगा और इसका खर्च भी वसूला जाएगा। नगर पालिका ने रामद्वारा प्रबंधन को वर्ष 1984-85 में शौचालय निर्माण की अनुमति दी, लेकिन प्रबंधन ने बिना अनुमति भवन व दुकानों का निर्माण भी कर लिया था। हालांकि नगर परिषद ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए रास्ते की जमीन पर अतिक्रमण करना माना था।
कार्रवाई के नाम पर नोटिस का खेल
वर्ष 1991 में नगरपालिका के तत्कालीन अधिकारियों ने मौका मुआयना कर रिपोर्ट मंगवाई व काम रुकवाकर निर्माण सामग्री जब्त कर ली। अधिकारियों ने रिपोर्ट में नजूल व सार्वजनिक रास्ते की भूमि पर अतिक्रमण माना। पालिका ने अतिक्रमण का मामला दर्ज कर संबंधित पक्ष को नोटिस जारी कर दिया। इसके बाद भी पालिका ने लगातार कई बार नोटिस जारी किए, लेकिन अवैध निर्माण नहीं हटाया जा सका। नगर परिषद आयुक्त श्रवण चौधरी ने एक बार फिर 11 जुलाई को दुकानदारों को अंतिम नोटिस जारी किया, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ।
प्रशासन की जिम्मेदारी
रास्ते की जमीन पर अतिक्रमण मानकर कोर्ट ने दुकानें हटाने का आदेश दिया था। यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह आदेश की पालना करवाए।
संत भागीरथराम, राम स्नेही रामद्वारा नागौर
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