वन विभाग के अनुसार गोगेलाव स्थित कंजर्वेशन सेंटर में रोजाना आने वाले वन जीवों की संख्या दर्जन भर से ज्यादा होती है। यहां पर आने वाले वन जीवों में ज्यादातर हरिण व नीलगाय ही होते हैं। मोरों की संख्या इन दोनों के औसतन केवल 50 प्रतिशत ही रहती है। यहां पर नागौर एवं इसके आसपास के निकटवर्ती जंगलों से वन जीव घायल होकर लाए जाते हैं।
सरकार नहीं लगा रही विशेषज्ञ चिकित्सक
गोगेलॉव कंजर्वेशन सेंटर में वन जीवों के उपचार के लिए स्थापित रेस्क्यू सेंटर में नियमित तौर पर पिछले पांच साल से न तो चिकित्सक लगाया गया, और न ही कपाउण्डर। इसके चलते भी वन जीवों के इलाज की स्थिति विकट ही रहती है। घायल होकर मरने वाले वन जीवों में सर्वाधिक संख्या चिंकारा हरिण एवं नीलगायों की ही ज्यादातर रहती है। हालांकि भामाशाहों की मदद से यहां पर लगे कपाउण्डर के इलाज करने की व्यवस्था होने से व्यवस्था में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन सरकार की ओर से चिकित्सा की उच्चीकृत व्यवस्था किए जाने पर वन जीवों के लिए स्थिति और ज्यादा बेहतर हो सकती है।
वन विभाग के अनुसार पिछले एक वर्ष के दौरान कुल 1046 वन जीवों को इलाज के लिए लाया गया। इसमें स्वस्थ होने पर 523 वन जीवों को जंगल में छोड़ दिया गया। मरने वालों में सर्वाधिक संख्या मोर, नीलगाय व हरिण की ही रही है।
वन विभाग की ओर से भेजा गया गया प्रस्ताव
जिला वन विभाग की ओर से रेस्क्यू सेंटर में बेहतर चिकित्सा व्यवस्था के लिए मुख्यालय स्तर पर प्रस्ताव भेजा गया। प्रस्ताव के मार्फत एक विशेषज्ञ चिकित्सक, कपाउण्डर, चिकित्सा के संसाधनों से सज्जित कराए जाने की मांग की गई। इसमें यह भी उल्लिखित किया गया कि गोगेलाव से जिला स्तरीय पशु चिकित्सालय की दूरी लगभग पांच किलोमीटर है। ऐसे में पशुओं की शल्य चिकित्सा के उपकरणों के साथ ही आवश्यक दवाओं की व्यवस्था भी रेस्क्यू सेंटर में होने पर स्थिति निश्चित रूप से बेहतर हो सकती है।
पर्यावरण के क्षेत्र में महती कार्य के लिए सम्मानित किए गए पद्मश्री से सम्मानित हिम्मताराम भांभू से बातचीत हुई तो कहा कि वन जीवों की बेहतरी पर सरकार ध्यान ही नहीं दे रही है। इंसानों के लिए तो हॉस्पिटल खूब खुल रहे हैं, लेकिन वन जीवों के उपचार के लिए हॉस्पिटल तो दूर की बात है उपचार तक की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। इसकी वजह से वन जीवों की स्थिति बहुत ज्यादा बिगड़ी है। भांभू ने कहा कि गोगेलाव कंजर्वेशन क्षेत्र में स्थापित रेस्क्यू सेंटर में एक चिकित्सक व कंपाउण्डर की स्थाई नियुक्ति होनी चाहिए। घायल होकर आने वाले पशुओं को तुरन्त उपचार मिल जाए तो फिर वन जीवों की जान बच सकती है। इस संबंध में प्रदेश सरकार के वन मंत्री एवं मुख्यमंत्री तक को पत्र लिखकर इसकी व्यवस्था किए जाने का आग्रह किया गया है। वन जीव ही नहीं रहेंगे तो फिर पर्यावरण का चक्र ही बिगड़ जाएगा।
उपवन संरक्षक सुनील कुमार का कहना है कि रेस्क्यू सेंटर में एक चिकित्सक एवं कंपाण्डर की नियुक्ति के लिए पशुपालन के संयुक्त निदेशक को पत्र भेजकर समस्या से अगवत कराने के साथ ही यहां पर नियुक्ति कराने का आग्रह किया गया है। हालांकि घायल होकर आने वाले वन जीवों के उपचार के लिए विभाग की ओर से सूचना दिए जाने के निकटवर्ती पशु चिकित्सालय से चिकित्सक या कंपाउण्डर आते तो हैं, लेकिन स्थाई तौर पर चिकित्सक की तैनातगी होने पर वन जीवों को बेहतर इलाज मिल सकता है। विभाग की ओर से वन जीवों की बेहतरी एवं सुरक्षा के लिए विभाग की ओर से विशेष टीम बनाकर लगा रखी है। इसके अलावा भामाशाहों के सहयोग से यहां पर चिकित्सा व्यवस्था के लिए एक कंपाउण्डर को लगा रखा है। इससे भी राहत मिली है, लेकिन पूर्ण रूप से संसाधनों की व्यवस्था होने पर स्थिति काफी बेहतर हो सकती है।