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नागौर

VIDEO…ध्यान नहीं दिया तो यह जहर शरीर के साथ कई खेतों को निगल जाएगा

Nagaur. अधिकाधिक उपज प्राप्त करने की होड़ में कीटनाशकों के प्रयोग ने इसको जहरीला बनाना शुरू कर दिया, लेकिन जिम्मेदारों के बेखबर बने रहने से स्थिति विकट होने लगी है।

नागौरJun 05, 2023 / 10:21 pm

Sharad Shukla

Nagaur news

If not taken care of, this poison will swallow many fields along with the body

कोशिकाओं में घुल रहा जहर नहीं निकलता बाहर
Nagaur. कीटनाशक की अंधाधुध उपयोग किसान कि सिर्फ मजबूरी नहीं, कई बार वो ज्यादा उपज के लालच में भी करते हैं। जानकारों की माने तो ज्यादातर किसानों कीटनाशक की जानकारी नहीं होती है। ऐसे में ज्यादा उपज के लिए आवश्यकता से ज्यादा उर्वरक और कीटनाशक डालते हैं। इससे उत्पादन की स्थिति तो बेहतर हो जाती है, लेकिन यह उत्पादन पूरी तरह से जहरीला होता है। पेस्टीसाइड इस तरह से अनाजों के अंदर घुल जाता है। यह जहर, पसीने, श्वांस, मल या मूत्र के जरिए हमारे शरीर से बाहर नहीं निकलता है, अपितु शरीर की कोशिकाओं में फैल जाता है। सरकार की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक ओर जहां डीडीटी को पूरे विश्व में प्रतिबंधित किया जा चुका है, वहीं मलेरिया नियंत्रण के नाम पर आज इसका उपयोग धड़ल्ले से किया जाता है। इस संबंध में पूर्व में भी आल इण्डिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज द्वारा कराये गये एक सर्वेक्षण से भी इसके घातक प्रभावों को पहचाना गया था। इसके बाद भी इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एवं अठियासन कृषि विज्ञान केन्द्र के अध्यक्ष डॉ. गोपीचंद सिंह से इस संबंध में बातचीत हुई तो उन्होंने कहा कि कीटनाशक ऐसा खतरनाक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है कि मानव की युवा पीढ़ी व आने वाली पीढ़ी भी कई रोगों का शिकार होने के साथ ही शरीर में आई विकृतियों से पीडि़त हो सकती है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जाट ने बताया कि यहां तो कीटनाशक फल एवं सब्ज्यिों के अंदर तक चले जाते हैं। इसके बाद वह इनका सेवन करने के साथ ही शरीर के अंदर तक प्रवेश कर जाते हैं। इनको किसी भी संयन्त्र की सहायता से नहीं निकाला जा सकता है। कृषि रोगों और खरपतवार को कीटनाशकों से खत्म करके अनाज, सब्जियाँ, फल, फूल और वनस्पतियों की सुरक्षा करने का नारा देकर कई प्रकार के कीटनाशक और रसायनों का उत्पादन किया जा रहा है; किन्तु इन कीटों, फफूंद और रोगों के जीवाणुओं की कम से कम पांच फीसदी संख्या ऐसी होती है जो खतरनाक रसायनों के प्रभावों से बच जाती है और इनसे सामना करने की प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेती है। ऐसे प्रतिरोधी कीट धीरे-धीरे अपनी इसी क्षमता वाली नई पीढ़ी को जन्म देने लगते हैं जिससे उन पर कीटनाशकों का प्रभाव नहीं पड़ता है और फिर इन्हें खत्म करने के लिये ज्यादा शक्तिशाली, ज्यादा जहरीले रसायनों का निर्माण करना पड़ता है। कीटनाशक रसायन बनाने वाली कम्पनियों के लिये यह एक बाजार है। इस स्थिति का दूसरा पहलू भी है। जब किसान अपने खेत में उगने वाले टमाटर, आलू, सेब, संतरे, चीकू, गेहूँ, धान और अंगूर जैसे खाद्य पदार्थों पर इन जहरीले रसायनों का छिडक़ाव करता है तो इसके घातक तत्व फल एवं सब्जियों एवं उनके बीजों में प्रवेश कर जाते हैं। फिर इन रसायनों की यात्रा भूमि की मिट्टी, नदी के पानी, वातावरण की हवा में भी जारी रहती है।
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