सूत्रों के अनुसार सीटी स्कैन मशीन खराब है, वो भी एक महीने से। रोजाना मरीज आते तो खूब हैं पर वहां बंद कमरे के बाहर लगा पर्चा पढ़कर चले जाते हैं। सीटी स्कैन मशीन खराब पड़ी है। सोमवार को नागौर के अजमेरी गेट से आए रमजान ने बताया कि उसका बेटा असद गिरकर घायल हो गया था। यहां सीटी स्कैन कराने आया तो पता चला कि कई दिनों से मशीन खराब है। एमआरआई की सुविधा पहले से ही नहीं है। सीटी-स्कैन मशीन आए दिन खराब रहती है। थॉयराइड जांच का ढर्रा पहले से थोड़ा सुधरा तो है पर मरीजों के लिए अन्य मुश्किलें भी कम नहीं है।
सूत्र बताते हैं कि मेडिकल कॉलेज के सहारे करीब दो साल से अधिकांश उच्च अधिकारी व अनेक डॉक्टर तक यही कहते नजर आ रहे हैं कि अब सुधार होगा। मरीजों को फायदा मिलेगा। हार्ट जैसे अन्य रोगों के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा। डॉक्टरों की लम्बी फौज होगी, जबकि धरातल में ऐसा नहीं है। मेडिकल कॉलेज का फस्र्ट ईयर तक ही अभी शुरू हो पाया है, तीन-चार साल बाद तो मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट डॉक्टर का रूप ले पाएंगे। इसके अलावा क्या अन्य साधन-संसाधन भी उसी के अनुरूप यहां बढ़ रहे हैं, सिवाय भवन निर्माण के।
आखिर रैफरल अस्पताल सी पहचान क्यों… सूत्रों का कहना है कि एक्सीडेंट में घायल, जहर खाने, बीपी/शुगर तक बढ़ जाने, आग की चपेट में आने तक ही मरीजों को रैफर कर दिया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक रोजाना करीब दो दर्जन ऐसे मरीजों को रैफर किया जाता है जो यहां भी उपचार पा सकते हैं, लेकिन ऐसा रुक नहीं रहा। बताया जाता है कि निजी एम्बुलेंस और गिने-चुने कर्मचारियों की मिलीभगत के कारण यह गौरखधंधा चल रहा है। अन्य जिलों के अस्पताल से इसका आकलन करें तो भी यहां का स्तर खासा अच्छा नहीं हो पाया। मेडिकल कॉलेज तो लगभग हर जिले में चालू हो गए। खास बात यह है कि मामूली रोगियों को बाहर रैफर करने का सिस्टम आज तक समझ नहीं आ रहा। चिकित्सक जिम्मेदारी लेना नहीं चाह रहे या फिर उन तक मामला पहुंचे, इससे पहले ही मरीज रैफर हो रहे हैं। सरकारी कम निजी एम्बुलेंस की भरमार है, कई बार इस तरह की शिकायत उच्च अधिकारियों तक पहुंच चुकी है।
एक साल में बढ़ रहे बीस फीसदी मरीज यहां पिछले साल से मरीजों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई। एक साल में करीब बीस फीसदी ओपीडी मरीज बढऩे के बाद भी अस्पताल लाचार है। बरसों से चिकित्सक-नर्सिंग अफसर समेत अन्य पद रिक्त हैं। खुद चिकित्सा विभाग के आला अधिकारी तक सकते में हैं कि आखिर जेएलएन अस्पताल में मरीजों की संख्या यकायक इतनी कैसे बढ़ गई, पांच साल में करीब सोलह लाख ओपीडी मरीज यहां पहुंच चुके हैं। पिछले पांच साल में जेएलएन अस्पताल में आने वाले ओपीडी मरीजों की संख्या में करीब एक लाख की बढ़ोत्तरी हुई है। भर्ती मरीजों के साथ अन्य काम का बोझ भी बढ़ा पर रिक्त पदों की भर्ती समेत अस्पताल में अन्य व्यवस्थाओं के प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चले गए।अकेेले जेएलएन अस्पताल में चिकित्सकों के साथ नर्सिंग अफसर के काफी पद खाली हैं । इसके अलावा सीनियर लैब टेक्नीशियन समेत अन्य पद भी काफी समय से रिक्त हैं। रेजीडेंट डॉक्टर भी गिने-चुने आए हैं।
साल दर साल बढ़ते आंकड़े वर्ष 2019 में जेएलएन अस्पताल में आए ओपीडी मरीजों की संख्या करीब सवा तीन लाख थी, जबकि यह संख्या 2023 में चार लाख दस हजार से अधिक रही। वर्ष 2022 में यह संख्या तीन लाख 32 हजार थी यानी एक साल में करीब ओपीडी मरीजों की संख्या में अस्सी हजार का इजाफा हुआ। वर्ष 2021 में तीन लाख साठ हजार तो 2020 में ओपीडी मरीजों की संख्या दो लाख 27 हजार थी। इस साल मार्च तक ओपीडी मरीज 38 हजार से अधिक रहे। पिछले साल वर्ष 2023 में भर्ती मरीजों की संख्या करीब 32 हजार थी।
शिफ्ट तो हुए पर हाल-बेहाल पुराना अस्पताल भवन में एमसीएच विंग शिफ्ट तो हो गई पर हालात अब भी ठीक नहीं है। एसएनसीयू वार्ड में पहले भी तकनीकी खामियों के कारण उपकरण जल गए और आधा दर्जन नवजात बाल-बाल बचे। बावजूद इसके अभी तक फायर फाइटिंग सिस्टम नहीं लग पाया। यही नहीं पानी तक की ना तो नई पाइप लाइन बिछी है ना ही कोई अन्य साधन। हालत यह है कि बार-बार टैंकर मंगाए जा रहे हैं।
इनका कहना सीटी-स्कैन मशीन सही करवाने के लिए कह दिया गया है। इसके रख-रखाव का काम एक एजेंसी के पास है। जहां तक मरीजों को रैफर करने की बात है जिसकी स्थिति अधिक गंभीर होती है, उसे ही करते हैं। ऐसी शिकायतें है तो दिखवाते हैं।
-डॉ. आर के अग्रवाल, पीएमओ, जेएलएन अस्पताल, नागौर।