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नागौर

बंद नहीं हुए बाल-विवाह पर बच्चियां इसे रोकने आ रही हैं आगे

एक अनुमान के मुताबिक हर साल सौ बाल विवाह होते हैं

नागौरOct 11, 2024 / 09:23 pm

Sandeep Pandey

जिले का हाल

इस साल के शुरुआती नौ महीने में बीस बाल विवाह रुकवाए

एक्सक्लूसिव

नागौर. धूम भले ही कम हो गई पर बाल विवाह अब भी थमा नहीं है। इसी साल के शुरुआती नौ महीने में ही बीस बाल विवाह नागौर (डीडवाना-कुचामन) में रोके गए। इनमें से सात बाल-विवाह वे थे जिनको रोकने की शिकायत खुद बालिकाओं ने की। रुके तो और भी होंगे पर हुए कितने, इसका कोई अंदाजा नहीं है।
सूत्रों के अनुसार तकरीबन छह साल में चाइल्ड लाइन में ही 180 शिकायतें मिली। इन शिकायतों के आधार पर बाल-विवाह रोकने की कवायद की गई। शिकायतें सम्बंधित अधिकारियों को भेजकर पाबंद करने की रिपोर्ट वापस मंगाई गई। वैसे तो हर साल आखातीज पर अधिक सक्रिय रहने वाला जिला प्रशासन अन्य सावों पर भी इसके लिए सतर्क रहता है पर असल में बाल-विवाह रोकने की शिकायत कम ही मिल पाती है, इसको अफसर भी कबूलते हैं। गांव-मोहल्ले में बेवजह टकराव/दुश्मनी तो कहीं राजनीतिक फायदा इसकी वजह बनता है। कई बार ऐसा भी हुआ कि संबंधित अधिकारी पहुंचे भी तो कई जनप्रतिनिधि ने कार्रवाई करने पर उन्हें ही उलटा लौटा दिया।
रोकने के लिए सालों से कवायद

बाल विवाह अपराध है और इसे रोकने के लिए सालों से कवायद की जा रही है पर नागौर के कई गांव/कस्बों में अब भी चोरी-छिपे नहीं खुलेआम बाल विवाह हो रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक हर साल नागौर (कुचामन-डीडवाना) में करीब सौ से अधिक बाल-विवाह होते हैं। जिला प्रशासन अपनी मुस्तैदी से दर्जनभर बाल-विवाह रोक पाता है। रोकने और पाबंद के बाद उनका विवाह बालिग होने के पहले नहीं होगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं होती। मकराना के पास एक गांव की चौदह साल की बालिका ने फरवरी में चाइल्ड लाइन को सूचित किया कि उसके परिजन जबरन उसका विवाह करा रहे हैं। तमाम कवायद हुई, विवाह रुक भी गया। बाद में पता चला कि उसकी दो अन्य बहनों का भी बाल विवाह पिछले साल हुआ था।
शिकायतें मिलती हैं नाम-मात्र

ग्रीनवेल चिल्ड्रन सोसायटी ही कई बरसों तक चाइल्ड लाइन हेल्प लाइन चलाती रही है। करीब छह साल में यहां मिली शिकायतों पर एक सौ साठ बाल-विवाह रोके गए। सोसायटी के प्रतिनिधि साहबराम चौधरी ने बताया कि वर्ष 2018-19 में 14, वर्ष 19-20 में 36, वर्ष 20-21 में 19, वर्ष 21-22 में 25, वर्ष 22-23 में 43 तो वर्ष 23-24 में 12 शिकायतें मिली जिस पर बाल-विवाह रुकवाए गए। चौधरी का कहना है कि यह बात सही है कि इनमें तीस फीसदी शिकायत संबंधित बालिका ने स्वयं या अपने किसी खास परिचित के जरिए कराई। वैसे कानून परिजनों को पाबंद किया जाता है कि वे बालिग होने तक इनका विवाह नहीं करेंगे। ये शिकायतें होने वाले बाल विवाह के मुकाबले काफी कम है।
अब भी नहीं मानते…

इस संबंध में लोगों से बातचीत में भी सामने आया कि गांव में अब भी बाल विवाह को अनिवार्य माना जा रहा है। कहीं बालिग बहन के साथ नाबालिग का भी विवाह सम्पन्न कराया जा रहा है तो कहीं माता-पिता अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए बालविवाह करने में आगे रहते हैं। कई परिजन कम खर्च में बाल-विवाह कर अपनी जिम्मेदारी पूरा करना उचित मानते हैं। जागरूकता के लिहाज से भी अभी काम पूरा नहीं हुआ है। सरकारी एजेंसी के साथ जनप्रतिनिधि इस काम में आगे नहीं आ रहे। खुद का वजूद बचाए को बाल-विवाह का मूक समर्थन करते हैं, ऐसे कई मामले जिला प्रशासन के अधिकारियों के सामने आए।
इनका कहना

बाल-विवाह संबंधी शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाती है। जागरुकता के लिए भी कार्य हो रहा है, एकजुट होकर सभी को इस प्रथा को समाप्त करने के लिए आगे आना होगा। पहले से संख्या में कमी आई है।
-रामदयाल मांजू, सहायक निदेशक बाल अधिकारिता विभाग, नागौर।

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