इस तरह के होंगे बदलाव
– हेल्थ इंश्योरेंस में बीमारियों की कवरेज का दायरा बढ़ाया जाएगा।
– सभी कंपनियों में कवर के बाहर वाली स्थाई बीमारियां समान देखने को मिलेंगी।
– कवर के बाहर वाली स्थाई बीमारियों की संख्या कम होकर 17 हो जाएंगी।
– किसी पॉलिसी में एक्सक्लूजन 17 होने पर प्रीमियम कम हो जाएगा।
– पॉलिसी में एक्सक्लूजन 30 से 17 होने पर प्रीमियम बढ़ जाएगा।
– नए प्रोडक्ट्स में 5 से 20 फीसदी प्रीमियम बढ़ सकता है।
– मानसिक, जेनेटिक बीमारी, न्यूरो जैसी गंभीर बीमारियों का कवर मिलेगा।
– न्यूरो डिसऑर्डर, ऑरल कीमोथेरेपी, रोबोटिक सर्जरी, स्टेम सेल थेरेपी भी कवर होंगे।
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कुछ इस तरह की होंगी शर्त
– डॉक्टर द्वारा 48 महीने पहले बताई गई बीमारी को प्री-एग्जिस्टिंग के दायरे में आएंगी।
– पॉलिसी के तीन महीने के अंदर लक्षण पर प्री-एग्जिस्टिंग बीमारी मानी जाएगी।
– 8 साल तक प्रीमियम के बाद क्लेम रिजेक्ट नहीं होगा और 8 साल पूरे होने पर कोई पुनर्विचार लागू नहीं होगा।
– 8 साल तक रीन्युअल करने के बाद गलत जानकारी का कोई बहाना नहीं चलेगा।
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रेश्यो में नहीं कट नहीं
– फार्मेसी, इंप्लांट और डायग्नोस्टिक एसोसिएट मेडिकल खर्च में नहीं होंगे शामिल, क्लेम में दिया जाएगा।
– क्लेम में आईसीयू चार्जेस के रेश्यो में कट नहीं लगेगा।
– एक से ज्यादा कंपनी की पॉलिसी होने पर ग्राहक के पास क्लेम चुनने का अधिकार।
– एक पॉलिसी की सीमा के बाद बाकी का क्लेम दूसरी कंपनी से लिया जा सकेगा।
– डिडक्शन हुए क्लेम को भी दूसरी कंपनी से लेने का अधिकार मिलेगा।
– 30 दिन में क्लेम स्वीकार या रिजेक्ट करना हो जाएगा जरूरी।
– टेलीमेडिसिन का खर्च भी क्लेम का हिस्सा बनाया जाएगा।
– एक कंपनी के प्रोडक्ट में माइग्रेशन तो पुराना वेटिंग पीरियड जुड़ेगा।
– ओपीडी कवरेज वाली पॉलिसी में टेलीमेडिसिन का पूरा खर्च दिया जाएगा।