शिवसेना के बंटवारे से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि इसमें कठिन संवैधानिक मुद्दे शामिल है। दरअसल यह टिप्पणी नबाम रेबिया मामले को लेकर की गई। शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट (Uddhav Thackeray) का पक्ष रखे रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने नबाम रेबिया केस के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है। उन्होंने कहा कि इसमें दिया हुआ फैसला दलबदलू विधायकों के पक्ष में जाता है और वे अपने खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही को रोकने के लिए अध्यक्ष को हटाने की मांग करने वाला नोटिस भेज सकते है। नबाम रेबिया केस के फैसले से इसकी अनुमति मिलती है।
दूसरी ओर, एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे (Harish Salve) और नीरज किशन कौल (Neeraj Kishan Kaul) द्वारा नबाम रेबिया फैसले पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता का विरोध किया है। इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि यह मुद्दा अब “अकेडमिक” हो गया है। खासकर तब जब उद्धव ठाकरे द्वारा यह एहसास होने के बाद कि वह फ्लोर टेस्ट में सफल नहीं होंगे और मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। शिंदे खेमे के वकीलों ने यह भी तर्क दिया कि एक स्पीकर को विधायकों को अयोग्य ठहराने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जब वह खुद पद से हटाने के प्रस्ताव का सामना कर रहा हो।
सीजेआई ने क्या कहा?
मामले की सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ ने टिप्पणी की कि नबाम रेबिया के संबंध में दोनों विचारों (ठाकरे गुट और शिंदे गुट) के गंभीर परिणाम हैं और इसलिए इस पर निर्णय लेना बेहद कठिन हो गया है।
सुनवाई के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने नीरज किशन कौल को संबोधित करते हुए कहा, “इस कारण से जवाब देना एक कठिन संवैधानिक मुद्दा है कि दोनों स्थितियों के परिणामों का राजनीति पर बहुत गंभीर प्रभाव है।”
सीजेआई ने कहा, यदि आप नबाम रेबिया मामले को स्वीकार करते हैं, तो यह कहता है, एक बार नोटिस जारी करने के कारण अध्यक्ष का अस्तित्व ही संकट में आ जाता है, तो अध्यक्ष को अयोग्यता पर निर्णय नहीं लेना चाहिए जब तक कि उनकी खुद की स्थिती स्पष्ट नहीं हो। इसका परिणाम, जैसा कि आपने महाराष्ट्र में देखा है, एक राजनीतिक दल से दूसरे में विधायकों के मुक्त प्रवाह की अनुमति देना है।
फिर, दूसरी स्थिति के बारे में टिप्पणी करते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा, कपिल सिब्बल के तर्क को अपनाने से ऐसे हालात बन सकते है, जहां एक पार्टी नेता जो बहुमत खो चुका है, वह स्पीकर को बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए कह कर राजनीतिक यथास्थिति सुनिश्चित कर सकता है। वो भी तब जब स्पीकर खुद ही अपने पद से हटाये जाने के प्रस्ताव का सामना कर रहा हो।
क्या है नबाम रेबिया मामला?
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 2016 में नबाम रेबिया मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि यदि विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के लिये पहले दिये गए नोटिस पर सदन में निर्णय लंबित है, तो विधानसभा अध्यक्ष विधायकों की अयोग्यता संबंधी याचिका पर आगे की कार्यवाही नहीं कर सकते।
7 जजों की पीठ के पास भेजने की क्यों हो रही मांग?
मंगलवार को सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश (CJI) के नेतृत्व वाली 5 जजों की पीठ से यह मामला सात जजों की संविधान पीठ के पास भेजने की मांग की। सिब्बल का कहना है कि नबाम रेबिया केस के फैसले पर पुनर्विचार किया जाये, जो कि 5 जजों की संविधान पीठ ने सुनाया था। हालांकि सिब्बल ने कोर्ट के सामने यह भी तर्क दिया कि अरुणाचल प्रदेश से जुड़ा नबाम रेबिया केस महाराष्ट्र के मामले में लागू नहीं होगा। लेकिन शिंदे समूह के वकीलो ने उनके दावों का खंडन किया।
गौरतलब हो कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के बागी विधायकों के लिए यह निर्णय विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरि सीताराम जिरवाल को हटाने संबंधी नोटिस लंबित होने के आधार पर शीर्ष कोर्ट में लाभकारी साबित हुआ।
बीते साल जून महीने में शिवसेना विधायक शिंदे और 39 अन्य विधायकों द्वारा पार्टी के नेतृत्व के खिलाफ बगावत करने के बाद राज्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई थी।