‘देशभक्ति देश के प्रति समर्पण में है… शत्रुता में नहीं’, बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाक कलाकारों पर बैन लगाने से किया इनकार
औरंगाबाद पीठ के न्यायमूर्ति किशोर संत ने कहा कि चुनाव कराने का तरीका बहुमत की राय के आधार पर तय नहीं किया जा सकता। इस टिप्पणी के साथ ही हाईकोर्ट ने हाथ उठाकर कराए गए गांव के उप-सरपंच चुनाव को रद्द करने के आदेश को बरकरार रखा। दरअसल एक पंचायत सदस्य के गुप्त मतदान के अनुरोध के बावजूद हाथ उठाकर बहुमत जांचा गया और गांव का उप-सरपंच चुना गया था।क्या है मामला?
यह विवाद महाराष्ट्र के जालना जिले के ग्राम पांगरी से जुड़ा है। जहां ग्रामपंचायत के 11 सदस्यों के पद के लिए जनवरी 2021 में चुनाव हुए से थे। गांव का सरपंच का पद अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित था। सरपंच और उप-सरपंच के चुनाव के दौरान प्रतिवादी राजेंद्र पवार ने गुप्त मतदान द्वारा वोटिंग की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया। लेकिन पीठासीन अधिकारी ने पंचायत सदस्य राजेंद्र पवार का आवेदन खारिज कर दिया और चुनाव को हाथ उठाकर कराया गया। इसमें याचिकाकर्ता आरती पवार को उप-सरपंच चुना गया।
याचिकाकर्ता ने क्या दलील दी?
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि गुप्त मतदान का आवेदन सरपंच पद के लिए था, न कि उप-सरपंच के लिए। चूंकि सरपंच पद के लिए केवल एक नामांकन प्राप्त हुआ था, इसलिए उस पद के लिए मतदान की आवश्यकता नहीं थी। याचिकाकर्ता के अनुसार, आवेदन की अस्वीकृति केवल सरपंच पद के लिए थी, न कि उप-सरपंच के लिए थी।
उपसरपंच की याचिका खारिज
कोर्ट ने कहा कि चूंकि राजेंद्र पवार ने गुप्त मतदान के लिए आवेदन तब दिया था जब यह पहले ही स्पष्ट हो गया था कि सरपंच के लिए केवल एक ही उम्मीदवार है और इसलिए सरपंच के लिए कोई चुनाव नहीं होगा। इस प्रकार उन्होंने उप-सरपंच का चुनाव गुप्त मतदान से कराने के लिए आवेदन दिया था।