मुंबई। इन दिनों निर्माता-निर्देशक जमकर पर्दे पर अश्लीलता परोस रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण है पिछले दिनों रिलीज हुई क्या कूल हैं हम 3 और आज रिलीज हुई मस्तीजादे। दोनों ही फिल्में पोर्न कॉम हैं। बेबी डॉल समेत तमाम एक्टर्स के हॉट एंड सैक्सी ट्रेलर दिखाकर निर्देशक मिलाप जवेरी ने लोगों के दिलों में फिल्म को लेकर काफी ज्यादा उत्सुकता पैदा कर दी है। इअ सवाल यह उठता है कि क्या मस्तीजादे उस उत्सुकता को बरकरार रखती है या क्या कूल की तरह यह भी मस्तिजादों की मस्ती भी ठंडी ही है।
मस्तीजादे बाले तो सिर्फ अश्लीलता
इस फिल्म के बारे में सीधे-सीधे तौर पर कहें कि निर्माता प्रीतीश नंदी और निर्देशक मिलाप जावेद ने सनी के जिस्म को परोस कर फायदा उठाने की कोशिश की है, लेकिन इसमें वो शायद ही सफल हों। यह एक तरह से सनी के फैंस के खिलाफ साजिश है। दर्शक बार-बार सनी के उसी रूप को क्यों देखने जाएंगे।
कहानी
वैसे तो ‘मस्तीजादे’ की कोई खास कहानी नहीं है। यह महज बॉलीवुड की बेबी डॉल सनी लियोनी के जिस्म की ओछी नुमाइश को एक सांचे में ढालने की कोशिश है। फिल्म की शुरुआत से अश्लीलता फिल्म में परोसी गई है। एक्टर रितेश देशमुख (दीप) से तुषार कपूर (सनी केले) और वीर दास (आदित्य चोटिया) मस्तीजादे बनने के गुर सीखते हैं और मस्ती करना शुरू कर देते हैं। समीर केले और आदित्य चोटिया एक ऐड मेकिंग एजेंसी में काम करते हैं। इसी दौरान आदित्य की एक ऐड में सनी लियोनी (लिली लेले) काम करती है। लिली को देखकर आदित्य उसका दीवाना हो जाता है। समीर को भी लैला लेले से प्यार होता है, जो लिली की जुड़वां बहन होती है।
लेकिन लिली की शादी शाद रंधावा(देशप्रेमी) से होनेवाली होती है और लैला तो सनी से प्यार नहीं, बल्कि सिर्फ जिस्मानी रिश्ते बनाना चाहती है। ऐसे में आदित्य लिली को रिझाने की और सनी लैला को प्यार के लिए मानाने की कोशिशे करते हैं। कहानी में आगे लिली और लैला के पिता यू आर अशिट(आसरानी), गे भाई डास (सुरेश मेनन) भी जुड़ जाते हैं। लैला और लिली के पिता आदित्य और सनी को पसंद नहीं करते और भाई डास जो गे है वो सनी को चाहने लगता है।
कहानी में एक के बाद एक कई ऐसी बेतुकी बातें होती हैं, जिसका ना कहानी का हिस्सा लगती, न ही गले उतरतीं। फिल्म में हंसाने की भरपूर कोशिश की गई है, लेकिन जीजेल ठकराल के दृश्य के अलावा कहीं भी हंसी नहीं आती है। यही वजह है की हर बार सनी लियोनी के जिस्म की नुमाइश का सहारा लेकर कहानी में गरमी बरकरार रखने की कोशिश की जाती है। लेकिन वो भी बेवजह की जाने के कारण भद्दी लगने लगती है। खैर अश्लीलता की हद को पार करते हुए आखिरकार आदित्य और सनी अपना प्यार लैला और लिली को पा ही लेते हैं।
एक नजर डायलॉग पर…
जैसी फिल्म मस्तीजादे ए ग्रेड है, वैसे ही इसके डायलॉग हैं। हर डायलॉग में दोहरे अर्थ की अश्लीलता का सहारा लिया गया है। जिसकी वजह से एकाद डायलॉग यदि याद भी रह जाए, तो वो भी भूलने का मन करता है।
गीत-संगीत…
फिल्म में मीत ब्रदर्स और अमाल मलिक का म्यूजिक है। बसंती कुत्तों के सामने ही नाचना…, मूंडे कह दे होर नच, रोम रोम रोम हुआ… जैसे कुछ गाने ठीक-ठाक हैं। सनी की बदौलत यह गाने उनके फैन्स को सुनने से ज्यादा देखने में अच्छे लग सकते हैं।
क्या मस्तीजादे देखना चाहिए…
हम तो यही कहेंगे कि यह दौर महंगाई का है। ऐसे में यह फिल्म देखना जेब पर भारी पड़ सकता है। फिल्म में कोई कहानी नहीं है। हर फिल्म की तरह इसमें भी सनी के जिस्म की नुमाइश के अलावा कुछ भी देखने को नहीं मिलेगा। हम तो यही कहेंगे कि फिल्म ने देखें, तो आपके लिए ही अच्छा होगा, बाकी आपकी जैसी चॉइस…।
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