कहानी कुछ ऐसी है कि अन्ना (नासर) शहर का टैंकर माफिया होता है और जिसका राज चलता है। रघु (सिद्धार्थ मल्होत्रा) को अन्ना गटर के पास मिला था, जब से लेकर बढ़े होने तक रघु उन्हीं की छत्र-छाया में पला बढ़ा होता है। रघु माफिया के काले कारनामों और खून-खराबों में अन्ना का राइड हैंड होता है। रघु अन्ना की हर बात मानता है और इसी वजह से अन्ना रघु को अपने बेटे से भी बढ़कर मानता है। अन्ना का रघु को ज्यादा प्यार करना अन्ना के असली बेटे विष्णु (रितेश देशमुख) को बिल्कुल पसंद नहीं, जिस वजह से वो रघु से नफरत करता है। रघु जहां एक तरफ खूब-खराबा करने वाला इंसान होता है लेकिन उनकी जिंदगी तब बदल जाती है, जब जोया (तारा सुतारिया) की एंट्री होती है। जोया को पहली ही नजर में रघु अपना दिल दे बैठता है और उसके साथ एक नई जिंदगी शुरू करना चाहता है, लेकिन इनके प्यार का दुश्मन बनता है विष्णु। विष्णु ऐसी साजिश रचता है कि रघु को जोया को अपने ही हाथों मारना पड़ता है। इसके बाद रघु कैसे विष्णु से बदला लेता है, इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
बात करें परफोर्मेंस की तो सिद्धार्थ मल्होत्रा विलेन के रोल में फिट नहीं बैठते हैं लेकिन एक आशिक का रोल उन्होंने बखूबी निभाया है। विलेन के रोल में रितेश देशमुख इंप्रेस कर जाते हैं। उनके डायलॉग्स काफी दमदार और मजेदार हैं। तारा सुतारिया स्क्रीन पर काफी प्यारी लगी हैं वहीं रकुल प्रीत ने भी अच्छी एक्टिंग की है, लेकिन दोनों का रोल छोटा है। अन्ना के रोल में नासर फिट बैठते हैं। फिल्म के गानों को बहुत पसंद किया जा रहा है। वहीं नोरा फतेही का आइटम सॉन्ग झूमने पर मजबूर कर देता है।
फिल्म में बहुत सारी कमजोर कड़िया हैं। मिलाप ने जिस तरह के लार्जर देन लाइफ किरदारों को परदे पर उकेरा है, विश्वसनीयता की कमी के कारण वे उथले -उथले लगते हैं। सेकंड हाफ काफी बोझिल लगने लगता है। फिल्म के सेट में काफी कंजूसी दिखाई गई है। एक छोटे से सेट में पूरी फिल्म को शूट किया गया है। रितेश देशमुख और सिद्धार्थ की सारी मेहनत पर पानी फेरा है डायरेक्टर मिलाप जावेरी ने । मैं इस फिल्म को दूंगी 5 में से 2 स्टार्स।