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अंग्रेजों को छक्के छुड़ा दिए थे
शहर के इतिहासकार जावेद रशीदी बताते हैं कि 1857 के गदर में नवाब मज्जू खान ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे और यहां बहादुरशाह जफर का झंडा लहरा दिया था। लेकिन बाद में अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बनाकर गोलियों से भूना और यही नहीं उनका शव चूने की भट्टी में झोंक दिया था। जब इससे भी दिल नहीं भरा तो उन्हें हाथी से पांव में बांधकर गलशहीद तक लाया गया। और यहां बने इमली के पेड़ में उनका सिर लटका दिया था। यही नहीं जितने लोगों ने अंग्रेजों की खिलाफत की थी। उन सभी को मारकर गलशहीद के इमली के पेड़ में टांग दी गयी थी। और इसी कारण आज इलाके को गलशहीद कहते है।
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मज्जू खां के लिए अब भी लड़ाई जारी
इतिहासकार जावेद रशीदी कहते हैं कि मौजूदा राजनीतिक व्वयस्था ने मज्जू खां जैसे क्रांतिकारी का आज कहीं कोई स्थान नहीं मिला। लेकिन अब इस ऐतिहासिक विरासत और इस इतिहास को संजोने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। बहरहाल जश्न ए आज़ादी में ऐसे शहीदों को नमन करना भी हमारा फर्ज है।