बता दें कि पहले अमरीका ने इस मिसाइल को लेकर भारत और तुर्की पर पाबंदी लगाने की धमकी भी दी। लेकिन अमरीकी आशा के उलट भारत और तुर्की ने धमकियों को खारिज कर दिया और साफ कर दिया कि वो वही करेंगे जो उनके देश के हित में होगा।
अमरीका-चीन ने ट्रेड वॉर खत्म करने पर जताई सहमति, संबंधों को बढ़ाने पर दिया जोर
इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर अमरीका ऐसा क्यों चाहता है? अमरीका क्यों S-400 को खरीदने को लेकर भारत और तुर्की के खिलाफ है जबकि चीन ने भी रूस से S-400 मिसाइल को खरीदा है?
राष्ट्रीय हित के लिए काम करेगा भारत
भारत ने अमरीकी धमकियों को दरकिनार करते हुए साफ कर दिया कि भारत वही करेगा जो देशहित में होगा। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने धमकी देते हुए कहा था कि यदि भारत S-400 सौदे को रद्द नहीं करता है तो उसे प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। इस पर भारत ने दो टूक जवाब देते हुए कहा हम किसी भी कीमत पर हम इसे रद्द नहीं कर सकते हैं। अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो की यात्रा के दौरान भी यह बात साफ़ कर दी गई। G20 सम्मेलन में भी अमरीका इस मुद्दे पर बातचीत करना चाहता था, लेकिन भारत ने इनकार कर दिया।
तुर्की भी अडिग
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगान ने भी अमरीका को जवाब देते हुए साफ कर दिया कि वह S-400 को खरीदने से पीछे नहीं हटेंगे। इसपर अमरीका ने लॉकहीड मार्टिन F-35 स्टील्थ फाइटर जेट्स के सौदे को रद्द करने की धमकी भी दी। हालांकि एर्दोगान को उम्मीद है कि बहुत जल्द ही तुर्की को S-400 मिसाइल सिस्टम मिल जाएगा।
अमरीका S-400 का क्यों कर रहा है विरोध?
रूसी मिसाइल तकनीक S-400 सिस्टम को खरीदने पर अमरीका भारत और तुर्की का ही क्यों विरोध कर रहा है, जबकि चीन ने भी इसे खरीदा है। चीन ने इसका सफल परीक्षण भी किया है। इसके पीछे कई कारण है।
दरअसल, रूस निर्मित S-400 ट्रिम्फ जिसे नाटो द्वारा SA-21 ग्रोथलर के रूप में जाना जाता है, दुनिया की सबसे खतरनाक परिचालन योग्य आधुनिक लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है जो कि अमरीका द्वारा विकसित रक्षा प्रणाली टर्मिनल हाई एल्टिन एरिया की तुलना में अधिक प्रभावी मानी जाती है।दूसरा, अगस्त 2017 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने काउंटरिंग अमरीका के सलाहकारों के माध्यम से प्रतिबंध अधिनियम ( CAATSA ) पर हस्ताक्षर किए जो विशेष रूप से रूस, ईरान और उत्तर कोरिया को लक्षित करता है।
ईरान-अमरीका के बीच बढ़ा तनाव, यूएस ने कतर में F-22 स्टील्थ फाइटर्स किया तैनात
इस अधिनियम की धारा 231 अमरीकी राष्ट्रपति को 12 सूचीबद्ध प्रतिबंधों में से कम से कम पांच को लगाने का अधिकार देती है। वहीं रूसी रक्षा और खुफिया क्षेत्रों के साथ ‘महत्वपूर्ण लेनदेन’ में लगे व्यक्तियों पर धारा 235 के तहत एक्शन लेने का भी प्रावधान है।
अमरीकी विदेश विभाग ने 39 रूसी संस्थाओं को ‘महत्वपूर्ण लेनदेन’ के लिए अधिसूचित किया है, जिसके साथ तीसरे पक्ष को प्रतिबंधों के लिए उत्तरदायी बनाया जा सकता है। लगभग सभी प्रमुख रूसी रक्षा विनिर्माण और निर्यात कंपनियां व संस्थाएं जिनमें अल्माज़-एंटी एयर और स्पेस डिफेंस कॉर्पोरेशन जेएससी इस सूची में शामिल हैं। S-400 सिस्टम के निर्माता भी इस सूची में हैं।
Read the Latest World News on Patrika.com. पढ़ें सबसे पहले World News in Hindi पत्रिका डॉट कॉम पर. विश्व से जुड़ी Hindi News के अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें Facebook पर Like करें, Follow करें Twitter पर.