पोम्पेओ से पूछा गया था कि अमरीका ने जर्मनी में अपने सैनिकों की संख्या में कमी क्यों की है। इस दौरान अमरीकी विदेश मंत्री ने कहा कि सैनिकों का स्थानांतरण अन्य स्थानों का सामना करने के लिए किया गया है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कार्रवाइयां भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस और दक्षिण चीन सागर जैसे देशों के लिए खतरा है। उन्होंने बताया कि अमरीकी सेना को उन चुनौतियों से निपटने के लिए उपयुक्त जगहों पर नियुक्त किया गया है।
पोम्पेओ ने उल्लेख किया कि बीते दो सालों से ट्रंप प्रशासन अमरीकी सेना की तैनाती पर समीक्षा कर रहा था। अमरीका ने आने वाले खतरों से निपटने के लिए एक बुनियादी रणनीति तैयार की है। सैन्य और साइबर हमलों से निपटने के लिए इसको अपनाया गया।
पोम्पेओ के अनुसार चीन की विस्तारवादी सोच पर लगाम लगाने के लिए इस तरह का फैसला लिया गया है। उन्होंने मीडिया को जवाब देते हुए कहा ‘हम वास्तव में मौलिक रूप से इस बात पर ध्यान देने के लिए वापस चले गए कि संघर्ष की प्रकृति क्या है, खतरे की प्रकृति क्या है और हमें अपने संसाधनों को कैसे आवंटित करना चाहिए। चाहे वह खुफिया समुदाय में हमारे संसाधन हों, वायु सेना में हमारे संसाधन हों, या मरीन हो। सुरक्षा तंत्र के आवंटन के रूप में सुधार लाना जरूरी था।
चीनी कंपनियों की लोकप्रियता खत्म पोम्पियो ने इससे पहले कहा था कि दुनियाभर में चीन का बाजार धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। चीन की टेक्नोलॉजी कंपनी हुवेई के साथ पूरी दुनिया कारोबार करने से इनकार कर रही है। इस दौरान उन्होंने भारत में मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस जियो की तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि स्पेन के टेलीफोनिका, ऑरेंज, ओ 2, जियो, बेल कनाडा, टेलस, और रोजर्स जैसी कंपनियां बेहतर और साफ-सुथरा व्यापार कर रही हैं।
भारत-चीन मुद्दे पर ट्रंप की राय बीते हफ्ते अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि वो भारत और चीन को सीमा पर तनाव को कम करने में सहयोग कर सकते हैं। अमरीका ने कहा था कि पूरे घटनाक्रम पर उनकी नजर है। ट्रंप ने कहा, ‘हालात बिल्कुल खराब हैं। हमलोग भारत के साथ चीन से बातचीत कर रहे हैं। सीमा पर दोनों देशों को बहुत बड़ी समस्या है। दोनों एक दूसरे के सामने आ गए हैं। हमलोग उन्हें मदद करने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं।’