दरअसल, इस मामले पर UNHRC में 22 देशों ने प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया, जबकि चीन और पाकिस्तान समेत 11 देशों ने विरोध में अपना मत दिया। वहीं, भारत समेत 14 देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। वोटिंग से पहले भारत ने एक बयान जारी करते हुए अपना स्टैंड साफ कर दिया और कहा कि श्रीलंका में मानवाधिकारों के हनन को लेकर हम दो मुद्दों को ध्यान रखते हैं।
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पहला- तमिल समुदाय को हमारा समर्थन और उनके लिए समानता, गरिमा शांति और न्याय। जबकि दूसरा- श्रीलंका की एकता, स्थिरता और क्षेत्रीय अखंडता है। ऐसे में हमें लगता है कि इन दोनों मुद्दों के साथ चलते हैं और श्रीलंका की तरक्की इन दोनों मुद्दों पर ध्यान देने पर ही सुनिश्चित होगी।
भारत ने आगे यह भी कहा कि हम श्रीलंका सरकार से अपील करेंगे कि तमिल समुदाय की उम्मीदों पर दें और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर सुनिश्चित करें कि लोगों की आजादी और मानवाधिकार की रक्षा की जाए।
विपक्ष ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट करने की अपील की थी
इस मामले पर तीन दिन पहले शनिवार को कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा था कि भारत को प्रस्ताव के पक्ष में वोट करना चाहिए।
चिदंबरम ने ट्वीट करते हुए लिखा ‘ये दुखद है कि श्रीलंका इस बात से इनकार कर रहा है कि उस देश में पहले भी और अभी भी मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, ख़ासतौर पर तमिल समुदाय के लोगों के लिए’। वहीं डीएमके नेता स्टालिन ने भी भारत सरकार से अपील की थी कि इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट करें।
चीन-पाकिस्तान ने इस वजह से प्रस्ताव के विरोध में किया वोट
जहां भारत ने प्रस्ताव में वोटिंग से दूरी बना ली, वहीं चीन और पाकिस्तान ने विरोध में मतदान किया। चीन का कहना था कि इस तरह के प्रस्ताव से किसी देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं चाहते हैं। इसलिए हम इस तरह के प्रस्ताव का समर्थन नहीं करते। चीन ने कहा कि श्रीलंका सरकार शांति और स्थिरता के लिए काम कर रही है।
इस विषय पर पाकिस्तान ने भी प्रस्ताव के विरोध में वोट किया और कहा कि यह प्रस्ताव LTTE द्वारा किए गए मानवाधिकार हनन की बात नहीं करता, जो कि एक अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन है। पाकिस्तान ने आगे कहा कि LTTE के खिलाफ उठाए गए कदमों की बात यह प्रस्ताव नहीं करता है।