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क्या है यहूदी धर्म, किन देशों के बीच इसको लेकर बने हैं जंग के हालात

माना जाता है कि यह करीब चार हजार साल पुराना धर्म है। इसमें केवल एक भगवान को माना जाता है। यह कई मायनों में दूसरे धर्मों से बिल्कुल अलग है। वैसे तो प्राचीन सभ्यता में यहूदी धर्म का लिंक हिंदू धर्म से भी है, मगर इस धर्म के लोग हिंदू धर्म से बिल्कुल अलग सिर्फ एक ईश्वर को मानते हैं। यही नहीं, इस धर्म में मूर्ति पूजा नहीं होती।
 

May 24, 2021 / 12:40 pm

Ashutosh Pathak

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नई दिल्ली।

यहूदी धर्म इन दिनों काफी चर्चा में है। यह चर्चा इजराइल और फिलीस्तीन के बीच चल रहे अघोषित युद्ध की वजह से अधिक है। दुनियाभर में लोग इजराइल की वजह से यहूदी धर्म के बारे में जानने को काफी उत्सुक हैं और इंटरनेट पर इसे काफी सर्च किया जा रहा है।
दरअसल, यहूदी धर्म काफी प्राचीन धर्म है। माना जाता है कि यह करीब चार हजार साल पुराना धर्म है। इसमें केवल एक भगवान को माना जाता है। यह कई मायनों में दूसरे धर्मों से बिल्कुल अलग है। वैसे तो प्राचीन सभ्यता में यहूदी धर्म का लिंक हिंदू धर्म से भी है, मगर इस धर्म के लोग हिंदू धर्म से बिल्कुल अलग सिर्फ एक ईश्वर को मानते हैं। यही नहीं, इस धर्म में मूर्ति पूजा नहीं होती। यह धर्म आज इजराइल का राजधर्म कहा जाता है।
कैसे बना इजराइल
माना जाता है कि यहूदी धर्म की शुरुआत पैगबंर अब्राहम यानी अबराहम या फिर इब्राहिम से हुई। पैगंबर अलै अब्राहम ईसा से दो हजार वर्ष पूर्व हुए थे। पहली पत्नी से उन्हें जो बेटा हुआ उसका नाम हजरत इसहाक अलै था। वहीं, दूसरी पत्नी से जो बेटा हुआ उसका नाम हजरत इस्माइल अलै था। हजरत इसहाक अलै की मां का नाम सराह था, जबकि हजरत इस्माइल अलै की मां का नाम हाजरा था। वहीं, पैगंबर अब्राहम अलै के पोते का नाम हजरत याकूब अलै था। याकूब का दूसरा नाम इजराइल था और उन्होंने ही यहूदियों की 12 जातियों को मिलाकर एक राष्ट्र इजराइल बनाया।
यहूदी क्यों कहे गए
असल में याकूब के एक बेटे का नाम यहूदा यानी जूदा था और उनके नाम पर ही आगे की वंशज यहूदी के तौर आगे बढ़ी। यही नहीं, हजरत अब्राहम को मुसलमान, ईसाई और यहूदी तीनों धर्म के लोग अपना पितामह मानते हैं। आदम से अब्राहम और उसके बाद मूसा तक ईसाई, इस्लाम और यहूदी के पैगंबर एक ही हैं। हालांकि, मूसा के बाद यहूदियों को अपने अगले पैगंबर के आने का अब भी इंतजार है।
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धार्मिक भाषा इब्रानी यानी हिब्रू है
यहूदी अपने भगवान को यहवेह या यहोवा कहते हैं। उनका मानना है कि सबसे पहले यह नाम भगवान ने हजरत मूसा को सुनाया था। यह शब्द ईसाइयों और यहूदियों के धर्मग्रंथ बाइबिल के पुराने नियम में कई बार आता है। यहूदियों की धार्मिक भाषा इब्रानी यानी हिब्रू है। उनका धर्मग्रंथ तनख है और यह इब्रानी यानी हिब्रू भाषा में लिखा गया है। इसे तालमुद या तोरा भी कहते है। ईसाई धर्म की बाइबिल में इस धर्मग्रंथ शामिल करके इसे पुराना अहदनामा कहते हैं। माना जाता है कि तनख की रचना ईसा पूर्व 444 से लेकर ईसा पूर्व 100 के बीच में हुई।
यहूदी धर्म के प्रमुख व्यवस्थापक रहे हैं मूसा
ईसा से करीब 1500 वर्ष पहले अब्राहम अलै के बाद यहूदी इतिहास में सबसे बड़ा नाम पैगंबर मूसा का है। माना जाता है कि मूसा यहूदी धर्म के प्रमुख व्यवस्थापक रहे हैं। उन्हें पहले से चली आ रही परंपरा को स्थापित करने की वजह से यहूदी धर्म का संस्थापक माना जाता है। मूसा मिस्र के फराओ के समय में पैदा हुए थे। मान्यता है कि उनकी मां ने उन्हें नील नदी में बहा दिया था। बाद में वह फराओ की पत्नी को मिले और उन्होंने मूसा का पालन-पोषण किया। मूसा बड़े होकर मिस्र के राजकुमार बने। हालांकि, बाद में उन्हें किसी तरह मालूम हो गया कि वे यहूदी हैं। तब यहूदी राष्ट्र के लोगों पर अत्याचार हो रहा था और यह धर्म गुलाम था। मूसा ने यहूदियों को एकत्रित किया और उनमें जीवन के प्रति नया उत्साहवर्धन किया।
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भगवान की मदद से फराओ को हराया
कहा जाता है कि मूसा को भगवान की ओर से दस आदेश मिले थे। एक पहाड़ पर भगवान से उनका साक्षात्कार हुआ और तभी यह आदेश उन्हें मिले। भगवान की मदद से उन्होंने फराओ को हराया और यहूदियों को आजादी दिलाई। मिस्र से उन्हें इजराइल में पहुंचाया। इसके बाद वह खुद भी इजराइल गए और वहां इजराइलियों को भगवान की ओर से दिए गए दस आदेश दिए। यही दस आदेश आज यहूदी धर्म के प्रमुख सिद्धांत माने जाते हैं।
सुलेमान को दिया जाता है सम्मान
यहूदी धर्म में अब्राहम अलै और मूसा के बाद दाऊद और उनके बेटे सुलेमान को सम्मान दिया जाता है। सुलेमान के काल में दूसरे देशों के साथ इजराइल के व्यापार में काफी बढ़ोतरी हुई। ऐसे में मान्यता है कि सुलेमान के वक्त में यहूदियों का सबसे अधिक उत्थान हुआ। उन्होंने करीब 37 वर्ष तक शासन किया और 937 ईसा पूर्व में उनका निधन हो गया।

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