भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी
नेल्सन मंडेला ऐसे पहले विदेशी शख्स हैं जिन्हें भारत सरकार ने 1990 में भारत रत्न जैसे अवॉर्ड से सम्मानित किया। मंडेला का भारत से आत्मीय लगाव होने के कारण आज भी देश में उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है।
अहिंसा के माध्यम से अश्वेत विरोधी शासन का अंत
जाति-धर्म और रंग के आधार पर होने वाले भेदभाव को दूर करने के लिए उन्होंने राजनीति में कदम रखा। महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानने वाले दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ एक अभियान शुरू की। उन्होंने अहिंसा के माध्यम से अश्वेत विरोधी शासन का अंत किया।
क्लर्क से राष्ट्रपति बनने तक का सफर
12 साल की उम्र में नेल्सन मंडेला के पिता की मौत हो गई। इसके बाद घर की सारी जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई। लॉ फर्म में क्लर्क की नौकरी कर उन्होंने अपने परिवार का भरण-पोषण किया।
1941 में रखा राजनीति में कदम
देश की मौजूदा स्थिति को देखकर नेल्सन मंडेला ने साल 1941 में जोहान्सबर्ग से राजनीतिक संघर्ष की शुरूआत की। देश हित की लड़ाई के दौरान ही वे धीरे-धीरे राजनीति में सक्रिय होते चले गए। 1944 में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल होने के बाद मंडेला को जेल भी जाना पड़ा। वे 27 साल तक जेल में रहे।
नए अफ्रीका की रखी नींव
साल 1990 में जेल से रिहा होने के बाद नेल्सन मंडेला ने शांति के मार्ग पर चलकर लोकतांत्रित अफ्रीका की नींव रखी। साल 1994 में दक्षिण अफ्रीका में हुए चुनाव में मंडेला की पार्टी को भारी जीत मिली। 10 मई 1994 में वे दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। 1999 में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया।
मंडेला पर लगा देश द्रोह का आरोप
साल 1961में नेल्सन मंडेला और उनके कुछ दोस्तों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। कोर्ट ने उन्हें निर्दोष मानते हुए उन पर लगे सारे आरोपों से दोषमुक्त कर दिया था।