हालात को देखते हुए भारत सरकार ने भी स्पष्ट कर दिया है कि जब तक चीन पुरानी स्थिति में वापस नहीं लौटता यहां तनाव कम हो पाना मुमकिन नहीं है। चीन ( China ) को हर हाल में पुरानी स्थिति पर लौटना पड़ेगा।
इतना ही नहीं विदेश मंत्रालय ( MEA ) ने चीन के आरोप को खारिज करते हुए साफ कर दिया कि हमने चीन की सीमा में प्रवेश नहीं किया, बल्कि चीन के सैनिकों को अपनी सीमा से बाहर जाने के लिए कहा जा रहा है।
अपनी फितरत से बाज आने को तैयार नहीं है चीन दरअसल, चीन लगातार धोखेबाजी की रणनीति ( China Traitor Policy ) अपना रहा है। वह अपनी धोखा देने की अपनी पुरानी फितरत से बाज आने को तैयार नहीं है। लेफ्टिनेंट स्तर की बातचीत का महत्व भी उसने एक रैंक जूनियर अफसर को भेजकर कम करने का प्रयास किया। उसने पीछे हटने के नाम पर अपना सैन्य दबाव दूसरे इलाकों के साथ गलवान घाटी में बनाए रखा है।
वर्तमान विवाद के बारे में पूर्व राजनयिक विवेक काटजू कहना है कि हमें चीन की आक्रामक रणनीति ( Aggressive strategy ) से सावधान रहना होगा। उसकी कथनी और करनी में फर्क है। वो जो कह रहा है उसके बजाय वह क्या कर रहा है हमें इसपर नजर रखनी होगी। चीन को लेकर भारत को अपनी नीति बदलने का सुझाव भी राजनयिक दे रहे हैं।
भारत-नेपाल रिश्ते को दुनिया की कोई ताकत तोड़ नहीं सकती – राजनाथ सिंह राजनयिक स्तर पर दखल दे भारत देश के पूर्व राजनयिक मान रहे हैं कि जिस स्तर पर विवाद पहुंच गया है वहां कूटनीतिक स्तर पर दखल के बिना कोई समाधान संभव नही लगता। बताया जा रहा है कि कूटनीतिक स्तर पर पर्दे के पीछे बातचीत जारी है।
रणनीतिक लोकेशन पर कब्जा जमाना चाहता है चीन भारत-चीन सीमा पर नजर रखने वाले रणनीतिक बल के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सीमा पर स्थिति नाजुक है। चीन रणनीतिक लिहाज से अहम लोकेशन ( Strategic Locations ) पर जमे रहना चाहता है।
भारत इस स्थिति को स्वीकार नही कर सकता। चीन न केवल गलवान घाटी में बल्कि पेंगोंग त्सो के फिंगर 4 से हटने को राजी नही है। जबकि भारत फिंगर 8 तक अपनी पेट्रोलिंग करता रहा है। इस समय चीनी सैनिकों की मौजूदगी की वजह से हमारे सैनिक फिंगर 4 से आगे नहीं जा सकते।
Corona के खिलाफ एक्शन में दिल्ली सरकार, 110 टीमें रोज जुटाएंगी 11 हजार सैंपल इस बार चीन का मूवमेंट ( China Movement ) इस तरह का है कि इसे स्थानीय स्तर से उपजा विवाद नहीं कहा जा सकता। इसमें निश्चित रूप से उच्च राजनीतिक नेतृत्व की सहमति है। इसलिए भारत को बहुत सावधान रहने की जरूरत है।