उत्तराखंड का सीएम बनने पर एनडी केंद्रीय संबंधों के चलते निवेशकों को राज्य में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया। नवनिर्मित राज्य के लिए जल्द से जल्द राजमार्ग व सर्किल मार्ग को बनवाए गए।
एनडी ने सबको साधा
एनडी तिवारी अपने मृदु व्यवहार के चलते असंतुष्टों को साधने में माहिर थे। उनके राजनीतिक कौशल और मिठास के आगे बडे-बडे नतमस्तक हो जाते थे। 18 मार्च 2016 को उत्तराखंड विधानसभा में संकट खडा करने वाले सारे नेता एनडी के समय भी थे। हांलाकि एनडी ने अपने दांव-पेंच के चलते किसी के दिमाग में विद्रोह का ख्याल भी नहीं आने दिया। राज्य गठन के बाद सीएम की कमान संभालने की तैयारी कांग्रेसी नेता हरीश रावत कर रहे थे कि पदभार एन तिवारी को सौंप दिया गया,इसके चलते दोनों के बीच अघोषित युद्ध शुरू हो गया। साथ ही एनडी को महत्वकांक्षी नेताओं की टीम को भी संभालना था। इनका संतुलन बनाए रखने के लिए एनडी ने विवेकाधीन कोष का इस्तेमाल किया। जब तक वे सक्रिय राजनीति में रहे, उनका खेमा अटूट रहा लेकिन ढलती उम्र के चलते तेजतर्रार एनडी की टीम बिखरती गई। उनके खेमे के सारे सदस्य कांग्रेस से टूट कर भाजपा में चले गए। सुबोध उनियाल से लेकर यशपाल आर्य हों या फिर विजय बहुगुणा या सतपाल महाराज ये सभी कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आ गए।
एनडी के कार्यकाल के दौरान ही मित्र विपक्ष का मुहावरा गढ़ा गया। यह एनडी का राजनीतिक कौशल ही था कि इलाहबाद यूनिवर्सिटी के छात्र संघ का अध्य़क्ष बनने के बाद वे यूपी के चार बार सीएम बने। केंद्र में भी एक जमाने में उनकी पोजिशन नंबर दो पर मानी जाती थी। उत्तराखंड की राजनीति में वे एक ऐसी विरासत छोड गए हैं जिसे किसी भी राजनितिज्ञ के लिए आसानी से खारिज करना आसान नहीं।
-15 अक्टूबर 1925 को नैनीताल जिले के बल्यूटी गांव में जन्म हुआ।
-प्रारंभिक शिक्षा बरेली के एडवर्ड मेमोरियल हाईस्कूल में।
-1939 में हाईस्कूल और 1941 में इंटर की परीक्षा प्राइवेट उत्तीर्ण की।
-17 वर्ष की आयु में स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय।
– 19 दिसंबर 1942 को पिता के साथ गिरफ्तार हुए और नैनीताल जेल में बंद रहे।
-1944 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बने।
-छह दिसंबर 1945 को इलाहाबाद विवि छात्र संघ को पुनर्जीवित किया।
-1945-49 तक आल इंडिया स्टूडेंट कांग्रेस के सचिव बनें।
-1948 में समाजवादी पार्टी में शामिल हुए।
-मार्च 1952 में नैनीताल विधानसभा में प्रजा समाजवादी पार्टी से विधायक बनें।
-मार्च 1957 में दूसरी बार चुना
– 1969 में पहली बार कांग्रेस विधायक के रूप में निर्वाचित हुए।
-यूपी सरकार में पहली श्रम, योजना व पंचायती राज मंत्री बने।
-1974 में काशीपुर विस से चुनाव जीते।
-21 जनवरी 1976 को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए।
-1977 को मुख्यमंत्री पद पर रहे।
-जनवरी 1980 में नैनीताल संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीते।
-1981 में योजना मंत्री व योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे।
-तीन 1984 को दूसरी बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
-मार्च 1985 में काशीपुर से विस का चुनाव जीता।
-11 मार्च 1985 को तीसरी बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
-15 जुलाई 1987 को केंद्र सरकार में वित्त एवं वाणिज्य मंत्री रहे।
-25 जून 1988 को चौथी बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बनें।
-नवंबर 1989 में आम चुनाव में हल्द्वानी सीट से चुने गए।
-नवंबर 1989 में यूपी के मुख्यमंत्री पद से पदमुक्त हुए।
-1991 में भाजपा के बलराज पासी से नैनीताल लोस सीट से चुनाव हारे।
-16 मई 1993 को पत्नी डॉ. सुशीला का न्यूयार्क में कैंसर की बीमारी से निधन।
-23 अगस्त 1994 कोयूपी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने।
-20 मार्च 1995 को कांग्रेस कार्यसमिति व संगठन के सभी पदों से त्याग पत्र दिया।
-19 मई 1995 को एनडी कांग्रेस से छह साल के लिए निष्कासित हुए।
-नौ अगस्त 1995 को कांग्रेस तिवारी बनाई।
-जनवरी 1997 में तिवारी कांग्रेस का कांग्रेस में विलय।
-1997 में उत्तरप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने।
-फरवरी 1998 में नैनीताल से मध्यावधि चुनाव हारे। कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया।
-2002 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनें।
-2007 से 2009 तक आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे।
-2009 में कथित सेक्स स्कैंडल के चलते इस्तीफा देना पड़ा।
-सबसे छोटे विधायक: 1957 में जब प्रजा समाजवादी पार्टी से चुनकर आए थे तो उत्तरप्रदेश की विधान सभा में वह सबसे कम उम्र (27 वर्ष) विधायक थे।
-दो राज्यों के पहले मुख्यमंत्री: एनडी देश के पहले ऐसे राजनेता हैं, जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रहे।
-बजट पेश करने का रिकार्ड: उत्तरप्रदेश की विधानसभा सबसे अधिक नौ बार बजट पेश करने का रिकार्ड भी एनडी तिवारी के नाम है। उन्होंने वित्त मंत्री व मुख्यमंत्री के रूप में बजट पेश किए।
-तीन पीढ़ियों के गवाह: एनडी देश के उन चंद दुर्लभ नेताओं में थे, जो गांधी और नेहरू के दौर में सक्रिय राजनीति में रहे। गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के गवाह एनडी ने नेहरू, इंदिरा, राजीव गांधी के साथ काम किया।
-देश के नंबर टू मंत्री: केंद्रीय राजनीति में एक दौर ऐसा भी आया जब एनडी प्रधानमंत्री की कुर्सी से कुछ कदम दूर थे। उनके हाथों में केंद्र में वित्त, विदेश, वाणिज्य, उद्योग, श्रम सरीखे अहम मंत्रालयों की कमान रही।
-चार बार मुख्यमंत्री: उत्तरप्रदेश सरीखे बड़े राज्य के एनडी चार बार मुख्यमंत्री रहे।
-पांच साल के मुख्यमंत्री: एनडी तिवारी के नाम उत्तराखंड में पूरे पांच साल मुख्यमंत्री रहने का भी रिकार्ड है। उनके बाद राज्य में भाजपा और कांग्रेस सरकारों में कोई मुख्यमंत्री पांच का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका।
उत्तराखंड में विकास की जो तस्वीर दिखाई दे रही है उसकी आधारशिला एनडी तिवारी के कार्यकाल में रखी गई। देवभूमि में निवेश हेतु विशेष औद्योगिक पैकेज का एनडी ने अपने अनुभव के चलते खूब लाभ लिया। परिणाम स्वरूप उत्तराखंड औद्योगिक राज्यों की श्रेणी में आ गया। एनडी ने देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में औद्योगिक क्षेत्र में नया आयाम दिया। एनडी के हिसाब से दून घाटी में हैदराबाद की तरह सिलिकॉन की संभावनांए थी। एक बार माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के संस्थापक बिल गेट्स के भारत आने पर एनडी ने उनसे दून को आईटी हब में बदलने की पेशकश भी की थी। सहस्त्रधारा में आईटी पार्क इसी सोच का नतीजा है। एनडी के कार्यकाल में ही तकनीकी यूनिवर्सिटी, उत्तराखंड संस्कृत विवि और दून विवि की नींव रखी गई। उनके कार्यकाल के दौरान 3700 मेगावाट की बिजली परियोजनाओं पर सरकार ने काम किया।
कांग्रेसी नेता एनडी तिवारी का आजीवन विवादों से नाता रहा।
चाहे वह जैविक पुत्र का मामला हो या अपने ही बनाए अस्पताल के सामने धरना देने का या फिर हैदराबाद में राज्यपाल के रूप में, वे किसी न किसी बात को लेकर अक्सर चर्चा में बने रहते थे। उनका विरोधियों के साथ शीत युद्ध हो या अपनों से टकराव सामने आते ही रहते थे। लेकिन इन सबके बावजूद लोग उनकी दूरदृष्टि के मुरीद थे।
जब यूपी को दो टुकडों से अलग कर उत्तराखंड बनाने की बात चल रही थी, इसी बीच एनडी का बयान आया था कि उनकी लाश पर उत्तराखंड बनेगा। समय ने ऐसी पल्टी मारी कि उन्हें ही उत्तराखंड की कमान सौंप दी गई। उन्होंने इस दौर में जम कर लाल बत्ती बांटी। हांलाकि कई लोग इसे एनडी का कुर्सी के प्रति मोह भी कहते हैं। इसके अलावा चर्चा में आया कि कांग्रेस हाईकमान एनडी को राष्ट्रपति की जिम्मेदारी सौंप सकती है, लेकिन उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। कुछ विवादों के चलते उन्हे यह पद छोडना पडा।
एनडी के साथ जुडा कुछ विवादास्पद मुद्दों में से जैविक पुत्र का मुद्दा भी रहा। वर्ष 2014 में रोहित शेखर तिवारी का जैविक पुत्र का मामला कोर्ट पहुंचा।यह प्रकरण लंबे समय तक चला ।अंत में एनडी ने रोहित को अपना बेटा मान ही लिया। रोहित की मां से विधिवत विवाह कर विवाद को समाप्त कर दिया
एनडी तिवारी कांग्रेसी रहे, लेकिन उनके संबंधों को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे। यूपी प्रवास के दौरान वे समाजवादी पार्टी के करीब रहे। हांलाकि उत्तराखंड में उनकी नजदीकियां कांग्रेस से रहीं। इस 2017 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने भाजपा को समर्थन दिया। इस दौरान दिल्ली में उनकी मुलाकात भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से हुई।
पूर्व सीएम एनडी तिवारी ने 20-22 साल की उम्र में ‘नेशनल हेराल्ड’ समाचार पत्र में बतौर पत्रकार अपने करियर की शुरुआत की थी । वह उत्तरप्रदेश विधानसभा में सवालों की बौछार कर देते थे।