डॉ. विपुल के मुताबिक 16 दिसंबर 2012 की रात तकरीबन डेढ़ बजे जब निर्भया को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ( safdarjang hospital ) पहुंचाया गया तो निर्भया की हालत देख वे अंदर से दहल गए थे। जिदंगी में पहले कभी ऐसा केस उन्होंने नहीं देखा था।
डॉ. विपुल के मुताबिक रात डेढ़ बजे का वक्त रहा होगा। तब उनकी अस्पताल में नाइट ड्यूटी थी। एंबुलेंस के रुकते ही तत्काल घायल को इमरजेंसी में इलाज के लिए पहुंचाया गया।
खून रोकने के लिए प्रारंभिक सर्जरी शुरू की। लेकिन खून नहीं रुक रहा था। क्योंकि रॉड से किए गए जख्म इतने गहरे थे कि उसे बड़ी सर्जरी की जरूरत थी। आंत भी गहरी कटी हुई थी।
निर्भया को बचाने के लिए विशेषज्ञ डाक्टरों का एक पैनल बनाया गया। इसमें डॉ. विपुल भी शामिल थे। बाद में हालत बिगड़ने पर उसे हायर सेंटर रेफर किया गया, जहां से एयर एम्बुलेंस के जरिए सिंगापुर भी भेजा गया। लेकिन ये तमाम कोशिशें नाकाफी रहीं और निर्भया जिंदगी की जंग हार गई।