इससे पहले चीन निवेश के बल पर पाकिस्तान के साथ नेपाल और बांग्लादेश ( Nepal and Bangladesh ) को भारत से दूर कर चुका है। दरअसल, ईरान और चीन के बीच महाडील ( Great deal between Iran and China) एक महात्वाकांक्षी अभियान का हिस्सा है। यह केवल व्यापारिक करार भर नहीं है बल्कि दुनिया भर में बदलते कूटनयिक समीकरणों को भी एक नया मोड़ देने वाला साबित होगा। यही वजह है कि ईरान और चीन के बीच हुई इस डील पर पूरी दुनिया की नजर है।
दोनों देशों के बीच हुआ यह रणनीतिक और व्यापारिक समझौता रूस और भारत ( India and Russia ) के बीच 1971 में हुए दीर्घकालिक समझौते की तरह का 25 वर्षीय सामरिक और कूटनीतिक करार जैसा है।
Ladakh में इस बार नहीं गलेगी China की दाल, फारवर्ड फ्रंट पर बढ़ेगी सेना की तैनाती, ड्रैगन पर रहेगी सैटेलाइट की नजर दरअसल, ईरान भारत की अमरीका, सऊदी अरब और इजरायल से बढ़ती दोस्ती से नाराज चल रहा था। इसलिए उसने भारत की जगह चीन ( China ) को तवज्जो दी है। अब ईरान अमरीका से युद्ध की स्थिति चीन से सैन्य सहायता आसानी से हासिल कर सकता है और युद्ध की स्थिति में अमरीका को जवाब दे सकता है।
बता दें कि चाबहार से अफगानिस्तान सीमा पर जाहेदान तक 628 किलोमीटर लंबा रेल लाइन ( Rail Line ) बिछाने को लेकर ईरान, अफगानिस्तान और भारत के बीच 4 साल पहले पीएम मोदी के तेहरान दौरे के दौरान करार हुआ था। लेकिन अब ईरान ने इस प्रोजेक्ट को खुर पूरा करने का फ़ैसला लिया है।
माना जा रहा है कि ईरान अब इस प्रोजेक्ट को पूरा करने का काम चीन के हवाले करने वाला है। हाल ही में ईरान के यातायात और शहरी विकास मंत्री मोहम्मद इस्लामी ने इसका उद्घाटन किया था और इस पर काम जारी है। ईरानी मीडिया के मुताबिक यह प्रोजेक्ट मार्च, 2022 तक पूरा कर लिया जाएगा। इसके लिए अब ईरान के नेशनल डेवलपमेंट फंड ( National Development Fund ) का इस्तेमाल किया जाएगा। ईरान के इस कदम को लेकर भारत पर असर को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।
Global Terrorism : पाक की भूमिका पर UNSC चर्चा के लिए तैयार, पाकिस्तान फिर होगा बेनकाब 17 अरब अमरीकी डॉलर का व्यापार इस समय ईरान में लगभग 4000 भारतीय नागरिक रहते हैं। दोनों देशों के बीच 17 अरब अमरिकी डॉलर का दोतरफा व्यापार है। चाबहार बंदरगाह ( Chabhar Port ) पर भारत के करोड़ों रुपये दांव पर लगे हैं। भारत, ईरान के तेल का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार है। भारत की रिफाइनिंग इंडस्ट्री से जुड़ें सूत्रों के मुताबिक भारत 3 लाख बीपीडी तेल आयात कर रहा है। जबकि सामान्य स्थिति में ये आयात 4.50 लाख से 5.50 लाख बीपीडी करता है।
भारत और ईरान के बीच डील के प्रमुख प्रावधान प्रधानमंत्री मोदी की मई 2016 में हुई तेहरान यात्रा के दौरान चाबहार बंदरगाह समझौता ( Chabahar Port Agreement ) भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच त्रिकोणीय संधि है। इसकी मदद से तीनों देशों को समुद्र के रास्ते व्यापार को बढ़ाने की रूपरेखा तय हुई थी। भारत ने इसके लिए 8.5 करोड़ डॉलर के निवेश का वादा किया था। इसके अतिरिक्त भारत ने ईरान को 15 करोड़ डॉलर का कर्ज देने की बात शामिल है। दिसंबर, 2018 से इस बंदरगाह को भारत ही चला रहा है। भारत वहां एक 900 किलोमीटर लंबी रेल लाइन भी बिछा रहा है।
भारत को ढूंढना होगा चाबहार का विकल्प चाबहार ( Chabhar ) व्यापारिक दृष्टि से अहम होने के साथ रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण है। यह चीन की मदद से विकसित किए गए पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट ( Gwadar Port ) से महज 100 किलोमीटर दूर है।
India China Standoff : पैंगोंग फिंगर-4 से पीछे हटीं दोनों देश की सेना, भारत का पीछे हटना चौंकाने वाली बात पेइचिंग 400 अरब डॉलर का निवेश करेगा जानकारी के मुताबिक ईरान और चीन बहुत जल्द महाडील करार पर हस्ताक्षर करने वाले हैं। इसके तहत चीन ईरान से बेहद सस्ती दरों पर तेल खरीदेगा। वहीं इसके बदले में पेइचिंग ईरान में 400 अरब डॉलर का निवेश करने जा रहा है। यही नहीं ड्रैगन ईरान की सुरक्षा और घातक आधुनिक हथियार देने में भी मदद ( Dragon also help in Iran’s security and giving deadly modern weapons ) करेगा। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक ईरान और चीन के बीच 25 साल के रणनीतिक समझौते पर बातचीत पूरी हो गई है।
गौरतलब है कि भारत और ईरान ( India and Iran ) के बीच पुराने सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध हैं। 1947 तक तो दोनों देशों की सीमाएं एक दूसरे से जुड़ी हुई थींं। दोनों देशों में राजनयिक रिश्तों की शुरुआत 1950 में हुई। भारत के तेहरान में दूतावास के अलावा बन्दर अब्बास और जहेदान में कांसुलेट भी हैं। ईरान के भी नई दिल्ली में दूतावास के अलावा मुंबई और हैदराबाद में कांसुलेट जनरल हैं।