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Lockdown In Bihar : घर लौटने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए नीतीश सरकार ने उठाए थे ये कदम

लॉकडाउन के दौरान स्पेशल ट्रेन से 22 लाख प्रवासी मजदूर अपने-अपने घर लौटे। जबकि अन्य सभी साधनों को जोड़ दें तो 60 से 70 लाख मजदूर लौटे।

बिहार सरकार ने 50 लाख प्रवासी मजदूरों को विभिन्न योजनाओं के तहत रोजगार देने की कार्ययोजना तैयार की है।
 

Aug 17, 2020 / 06:15 pm

Dhirendra

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बिहार सरकार ने 50 लाख प्रवासी मजदूरों को विभिन्न योजनाओं के तहत रोजगार देने की कार्ययोजना तैयार की है।

नई दिल्ली। देशभर में 25 मार्च को लॉकडाउन लागू होने के बाद प्रवासी मजदूरों की समस्या बिहार सरकार के सामने एक चुनौती बनकर उभरी थी। लेकिन नीतीश सरकार ने विपक्षी हमलों के बीच इस समस्या से पार पाने के लिए कई कदम उठाए। इनमें सबसे ज्यादा जोर दूसरो राज्यों से प्रवासी मजदूरों की घर वापसी पर दिया गया था।
बिहार सरकार ने सबसे पहले केंद्र और कई राज्य सरकारों से तालमेल स्थापित कर प्रवासी मजदूरों की घर वापसी पर जोर दिया। बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 21 लाख से अधिक लोगों को नई दिल्ली के बिहार भवन स्थित कंट्रोल रूम से मदद की गई है। लेकिन लगभग 22 लाख लोग श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से आए हैं।
पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर और राज्य के जाने-माने समाजशास्त्री डीएम दिवाकर के मुताबिक लॉकडाउन के दरमियान जितने लोग सरकार के इंतजामों के जरिए आए हैं, उतने ही या उससे अधिक लोग खुद से व्यवस्था कर दूसरे साधनों से आए हैं। लौटकर आने वाले लोगों की संख्या 60 से 70 लाख से हो सकती है।
बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान वापस लौटकर जिन श्रमिकों ने क्वारंटीन सेंटरों में वक्त बिता लिया उन सभी का स्किल सर्वे किया गया है। बिहार सरकार ने 50 लाख श्रमिकों को रोजगार देने की कार्ययोजना तैयार की है। इनमें से 30 लाख प्रवासियों के लिए विशेष प्लान है। अभी तक पांच लाख से अधिक लोगों को काम मिल चुका है।
इसके अलावा मनरेगा, जल-जीवन-हरियाली और कृषि आधारित दूसरी योजनाओं के ज़रिए अधिक से अधिक लोगों को रोजगार देने की कोशिश जारी है। श्रम संसाधन विभाग ने प्रवासी मजदूरों को उनके स्किल के आधार पर काम देने के लिए विशेष तौर पर एक ऑनलाइन पोर्टल की शुरुआत की है। एक लाख से अधिक श्रमिकों ने उसपर अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया है।
दूसरी तरफ बिहार के एक आम आदमी की बात करें तो कोरोना के लिए किसी सरकार या व्यक्ति विशेष को दोषी नहीं ठहराया जा सकता हैं लेकिन बिहार में नीतीश सरकार ( Nitish Government ) को कठघरे में इसलिए खड़ा किया जा रहा है कि वहां पर कोरोना विस्फोट (Corona explosion ) की शुरुआत जुलाई में हुई। बिहार सरकार को कोरोना पर काम करने के लिए दूसरे राज्यों की तुलना में साढ़े तीन महीने से ज्यादा समय मिला।
दरअसल, 25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन लागू होने के बाद प्रवासी मजदूर घर वापसी करना चाहते थे, पर इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तैयार नहीं थे। जब इस पर राजनीति जोर पकड़ने लगा तो काफी ना-नुकुर के बाद सीएम नीतीश कुमार ने प्रवासी मजदूरों को वापस आने की इजाजत दी।
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नीतीश का यही रवैया अब उनके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। बिहार लौटे 20 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर इस बात को बखूबी जानते हैं कि कैसे नीतीश ने उन्हें दोयम दर्जे के बिहारियों की तरह ट्रीट किया।
फिर नीतीश की इस सोच की वजह से मार्च से मई के दौरान बिहार में इस धारणा को बल मिला कि प्रवासी मजदूर ( Migrant Laborer ) वापस लौटे तो बिहार में कोरोना फैलेगा। हालांकि कोरोना संक्रमण के आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण करेंगे तो ये आशंका निर्मूल साबित हुई। यानि मार्च ये जून तक कोरोना मरीजों की संख्या में मामूल बढ़ोतरी की वजह से ये बहस ठंडा पड़ गया। लेकिन 15 जुलाई के बाद कोरोना विस्फोट जोर पकड़ने की वजह से ये बात सामने आई कि इसके लिए प्रवासी मजदूर जिम्मेदार नहीं हैंं
कोरोना को लेकर नीतीश की उदासीनता आई सामने

हकीकत यह है कि कोरोना विस्फोट के लिए प्रवासी मजदूरों को दोषी ठहराना बिल्कुल ही जायज नहीं है, बल्कि नीतीश सरकार की नाकामी इसमें ज्यादा नजर आती है। इस बात को आप कोरोना मरीजों की जिलेवार संख्या के आंकड़ों के आधार पर साबित किया जा सकता है। जिन आंकड़ों पर इसे नीतीश कुमार को कोरोना के खिलाफ लड़ाई में फेल साबित किया जा सकता है। केंद्र या किसी स्वायत्त या निजी एजेंसियों की नहीं, बल्कि बिहार सरकार ( Bihar Government ) के ही आंकड़ों ही चिल्ला-चिल्लाकर बता रहे हैं कि बिहार सरकार ने समय रहते पर कोरोना कोनियंत्रित करने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए।
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बिहार में पहला केस 22 मार्च को सामने आया

बिहार में कोरोना वायरस के संक्रमण का पहला केस 22 मार्च को सामने आया था। जब पटना एम्स में भर्ती किए गए मोहम्मद सैफ की मृत्यु के बाद उसकी रिपोर्ट कोविद-19 ( Covid-19 ) पॉजिटिव आई थी। इसके बाद प्रदेश में 23 मार्च को लॉकडाउन घोषित कर दिया गया। दो दिन बाद यानि 25 मार्च से पूरे देश में लॉकडाउन लागू हो गया।
1 जुलाई को बिहार में कोरोना वायरस से संक्रमितों की संख्या 10,250 तक सीमित थी। 22 जुलाई को कोरोना मरीजों की संख्या करीब तीन गुना ज्यादा 30,066 हो गई। यानि शुरुआती 99 दिनों में कोरोना मरीजों की संख्या 10,250 थी जबकि 21 दिनों में बढ़कर हो 30,066 गई । यानि 21 दिनों में कोरोना मरीजों की संख्या में कुल बढ़ोतरी हुई 19,816 की हुई। अब बिहार में मरीजों की संख्या है 1,03,844 है। इस लिहाज से भी देखें तो पहले 99 दिनों में मरीजों की संख्या 10,250 जबकि उसके बाद के 46 दिनों में 93, 594 नए मरीज सामने आए। जबकि बिहार सकरार को तीन महीने का समय कोरोना से लड़ने की तैयारियों के लिए मिला जो दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केनार्टक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश को नहीं मिलें
दूसरी तरह 21 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर बिहार कोरोना के शुरुआत 40 दिनों के अंदर ही बिहार लौट गए थे। इतना ही नहीं शुरुआती 99 दिनों कोरोना के मामूली संख्या में ही मजदूर सामने आए। आंकड़ों पर नजर डालें तो बिहार में कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित 10 जिलों में पटना सबसे आगे हैं। जबकि पटना सबसे कम प्रवासी मजदूर लौटे।
22 जुलाई, शाम 5 बजे तक के आंकड़ों पर गौर करें तो पटना में 4479, भागलपुर में 1859, मुजफ्फरपुर में 1382, सिवान में 1154, नालंदा में 1051 और नवादा में 898 कोरोना मरीज पाए गए हैं। इन जिलों के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि पटना में जहां 21,433 तो गया में 73769 प्रवासी मजदूर लौटे थे।
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प्रवासी मजदूरों पर दोष मढ़ना गलत

दरअसल, बिहार सरकार के आंकड़े बताते हैं कि जिन जिलों में सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर लौटे, वहां कोरोना वायरस की संख्या सीमित है। आंकड़ों पर ही गौर करें तो मधुबनी जिले मे सबसे ज्यादा 98,175 प्रवासी लौटे जहां 22 जुलाई तक कोरोना वायरस के 718 मामले दर्ज हुए। इसी तरह पूर्वी चंपारण में 93,293 प्रवासी मजदूर लौटे वहां भी 22 जुलाई तक 678, कटिहार में 85,797 प्रवासी मजदूर लौटे लेकिन कोरोना पॉजिटिव की संख्या महज 619 ही था ।
दरभंगा में 76,556 प्रवासी कामगार लौटे और कोविद-19 के महज 545 मामले, पश्चिम चंपारण में 62,737 प्रवासी लौटे और संक्रमितों की संख्या 913, अररिया में 7926 प्रवासी लौटे और 300 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए। इसी तरह रोहतास में 59739 प्रवासी मजदूर मजदूरों ने घर वापसी की जबकि कुल 1051 मामले दर्ज हुए थे।
इसी तरह पूर्णिया में 59171 प्रवासी मजदूर लौटे हैं और संक्रमितों का आंकड़ा महज 434 और समस्तीपुर में 54505 प्रवासी लौटे जहां अभी तक 827 मामले ही दर्ज किए गए। 22 जुलाई के बाद भी जिन जिलों में प्रवासी मजदूर ज्यादा लौटे वहां पर कोरोना मरीजों की संख्या औसत बहुत कम है।
आईएमए ने बिहार सरकार को चेता दिया था

बिहार इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ( IMA ) ने भी मौजूदा कोरोना संक्रमण के लिए बिहार सरकार की लापरवाही और लेटलतीफी को जिम्मेवार ठहराया है। आईएमए के बिहार प्रदेश के वरीय उपाध्यक्ष डॉ. अजय कुमार की बात माने तो सूबे में लंबे अरसे से डॉक्टरों के पद खाली हैं। आगाह किए जाने के बावजूद सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। डॉ. अजय ने कहा कि आज हालात ऐसे बन गए हैं कि सरकार को इच्छाशक्ति के साथ काम करना होगा और तभी हम कोरोना वायरस से जीत सकेंगे।
सहयोगी एलजेपी नाराज

इन आंकड़ों से साफ है कि नीतीश सरकार कोरोना संकट काल में भी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी रही। कोरोना के नाम पर जो फंड से आए उसे सियासी रेवड़ी की तरह वोट बैंक के मुताबिक बांटते रहे। कोरेाना इलाज के साधन जुटाने पर ध्यान नहीं दिया। सहयोगी बीजेपी ( BJP ) भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधी रही। यही वजह है कि अब कोरोना को लेकर सहयोगी एलजेपी ( LJP ) के प्रमुख चिराग पासवान नीतीश सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की किसी भी समय घोषणा करने वाले हैं।

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