दरअसल हर कोई ये जानना चाहता है कि आखिर ये जीरो एफआईआर क्या होती है। क्या ये सामान्य एफआईआर से अलग होती है, अगर हां तो इसमें क्या अंतर होता है? कुछ ऐसे ही सवाल हर किसी को मन में उठ रहे हैं। आईए आपको बताते हैं कि आखिर ये जीरो एफआईआर होती क्या है, जिसको लेकर इन दिनों हर तरफ चर्चा हो रही है।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को एनसीपी चीफ शरद पवार ने दी सलाह, जानें क्या हैं इस नसीहत के मायने सुशांत सिंह राजपूत केस में जीरो एफआईआर दर्ज होने के बाद से ही इसको लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। दरअसल किसी भी आपराधिक मामले में कोशिश की जाती है कि एफआईआर संबंधित थाना क्षेत्र में ही दर्ज की जाए, ताकि केस की जांच को आसानी से आगे बढ़ाया जा सके। लेकिन कई बार कुछ परिस्थितियों में ये संभव नहीं हो पाता है।
इन हालातों में कानून देता है अनुमति
जब कुछ परिस्थितिथियों के कारण संबंधित थाने में एफआईआर दर्ज नहीं करवाई जा सकती है तो पीड़ित को किसी बाहरी पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज करवानी पड़ती है। ऐसे में कई बार देखा गया है कि मामला बाहर का होने के कारण उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता है। ऐसी परिस्थितियों में पीड़ित की मदद करने के लिए सरकार की ओर से कानून में जीरो एफआईआर का प्रावधान जोड़ा गया है।
इस कानून के तहत पीड़ित अपने नजदीकी किसी भी थाने में जाकर एफआईआर दर्ज करा सकता है। ऐसी ही एफआईआर को जीरो एफआईआर के तौर पर दर्ज किया जाता है। इसके बाद इस एफआईआर को संबंधित थाने में ट्रान्सफर कर दिया जाता है। जहां पर फिर इसकी आगे की कार्रवाई होती है।