क्रायोजेनिक इंजन की तकनीक को और ज्यादा पुख्ता करने में जुटा इसरो
क्रायोजेनिक इंजन पर यह परीक्षण तमिलनाडु के महेंद्र गिरि पर्वत स्थित इसरो तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र में चल रहा है
Cryogenic engine technology
बेंगलूरू । स्वदेशी तकनीक से विकसित क्रायोजेनिक इंजन सीई-20 के सफल परीक्षण के बाद इंजन के डिजाइन, निष्पादन क्षमता और तकनीक को पुख्ता करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इंजन पर श्रृंखलाबद्ध परीक्षण कर रहा है। यह जानकारी इसरो ने दी है।
क्रायोजेनिक इंजन पर यह परीक्षण तमिलनाडु के महेंद्र गिरि पर्वत स्थित इसरो तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र में चल रहा है। चार टन या उससे अधिक वजनी संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए विकसित किए जा रहे ताकतवर प्रक्षेपण यान जीएसएलवी मार्क-3 का तीसरा चरण है क्रायोजेनिक इंजन सीई-20 जो निर्वात में 73.55 किलोन्यूटन का जोर लगाते हुए उपग्रह को निर्दिष्ट कक्षा तक पहुंचाता है। पिछले ही सप्ताह इसरो ने इस इंजन का सफल परीक्षण किया था जिसे जीएसएलवी मार्क-3 के विकास में मील का पत्थर माना गया। इसके लिए इंजन को 635 सेकेंड तक फायर किया गया।
इसरो ने कहा कि क्रायोजेनिक इंजन की उप प्रणालियों को परखा जा रहा है। इसमें थ्रस्ट चैंबर, इंजेक्टर, गैस जेनरेटर, एलओएक्स और एलएच-2 टर्बो पम्प, नियंत्रक उपकरण, पायरो सिस्टम्स आदि शामिल है। अभी तक ये उप-प्रणालियां हर मानदंडों पर खरा उतरी हैं और हर परीक्षण उम्मीदों के अनुरूप रहा है। प्रणालियों को परखने के लिए अभी तक दो “कोल्ड स्टार्ट परीक्षण” और चार “शार्ट डयूरेशन हॉट टेस्ट” किया जा चुका है। ये परीक्षण क्रायोजेनिक इंजन तकनीक की डिजाइन और उसकी निष्पादन योग्यता को परखने के लिए किए जा रहे हैं और अब तक मिली सफलताओं से यह तय हो गया है कि इस जटिल तकनीक को पूर्ण रूप से हासिल करने में इसरो सफल रहेगा। इससे पहले क्रायोजेनिक इंजन सीई-7.5 का विकास कर इसरो जीएसएलवी का एक सफल प्रक्षेपण कर चुका है। सीई-20 का विकास प्रक्षेपण यान जीएसएलवी मार्क-3 के विकास के लिए काफी अहम है। यह उपग्रहों के प्रक्षेपण में इसरो को आत्मनिर्भर बना देगा।
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