scriptEconomist Santosh Mehrotra : 2008 की वैश्विक मंदी से कई गुना बड़ा है कोरोना-लॉकडाउन संकट | Economist Santosh Mehrotra: Corona-lockdown crisis is many times bigger than 2008 global recession | Patrika News
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Economist Santosh Mehrotra : 2008 की वैश्विक मंदी से कई गुना बड़ा है कोरोना-लॉकडाउन संकट

देश के सामने उत्पन्न विकट स्थिति को समझना जरूरी
आर्थिक पैकेज से आगे बहुत कुछ करना बाकी
रि-पेमेंट कैपिसिटी बढ़ाने को लेकर नीतिगत निर्णय ले सरकार

May 17, 2020 / 07:27 pm

Dhirendra

santosh mehrotraaaa

मान​व विकास अर्थशास्त्री और जेएनयू के प्रो. संतोष मेहरोत्रा।

नई दिल्ली। देश और दुनिया के जाने माने मानव विकास अर्थशास्त्री और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा ने 20 लाख करोड़ रुपए की अर्थिक पैकेज के पीछे मोदी सरकार की मंशा को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी हुई है। सरकार उसे पटरी पर लाना चाहती है। ऐसी मंशा हर सरकार की होती है। इसमें कुछ भी नया नहीं है।
पत्रिका से बातचीत में उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई है। केंद्र सरकार की मजबूरी है कि किसी भी तरह उसे पटरी पर लाए। इस बात को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपए की विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। इस तरह की मंशा हर सरकार की होती है। क्योंकि बिगड़ी व्यवस्था को ट्रैक पर लाने की जिम्मेदारी उसी की होती है।
विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा 5 किस्तों में करने के पीछे सरकार की मंशा क्या है?

विशेष आर्थिक पैकेज को लेकर पांच चरणों में घोषित नीतियों से इतना तो साफ है कि सरकार की मंशा बेहतर करने की है। लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या सरकार ऐसा कर पाएगी। मजदूरों से लेकर उद्योपतियों तक को इससे राहत मिलेगी। निष्पक्षता के साथ देश की वर्तमान आर्थिक हालातों का अध्ययन करेंगे तो आप संतोषजनक निष्कर्ष पर पहुंचने की स्थिति में नहीं होंगे।
उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन क्राइसिस केवल गंभीर आर्थिक संकट भर नहीं है। यह एक गंभीर मानवीय समस्या भी है। आर्थिक संकट इसलिए कि कोरोना महामारी की वहज से पहली बार सकल घरेलू उत्पाद पिछले वर्ष की तुलना में कम होने का खतरा देश पर मंडरा रहा है। किसी भी अर्थव्यवस्था में लिए ऐसी स्थिति उत्पन्न होना गंभीर संकट का प्रतीक होता है। मानवीय संकट इसलिए कि कोरोना वायरस देश को केवल अर्थिक रूप से नुकसान न पहुंचाकर यह मानवीय संपदा को भी नुकसान पहुंचा रहा है। यह कुशल और अकुशल मानवीय संसाधन को समाप्त करने पर तुला है।
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जहां तक बात 20 लाख करोड रुपए के आर्थिक पैकेज की है तो मैं आपको बता दूं कि इससें में 80 फीसदी हिस्सा आरबीआई, बैंकिंग वारंटीज और बैंकिंग पॉलिसी एक्शन व अन्य वित्तीय संस्थानों की गतिविधियों पर निर्भर है। अधिकांश मामलों में यह प्रावधान है कि आप लोन लेंगे तो आपको लाभ होगा। यहां पर भी अहम सवाल यह है कि लॉकडाउन के बाद हमारी कितनी इंडस्ट्रीज लोन लेने और रि-पेमेंट करने की स्थिति में है।
इस बिंदु पर आगे बढ़ें तो एमएसएमई सेक्टर के लिए केंद्र सरकार ने 3 लाख करोड़ रुपए लोन जारी करने की घोषणा की है। ये लोन एमएसएमई इकाईयों को अक्टूबर, 2021 से पहले लेना होगा। इसके बाद ये सुविधा खुद ब खुद समाप्त हो जाएंगी। क्या वर्तमान हालात में आपको लगता है कि जो मजदूर पलायन कर गए हैं वो इतनी जल्दी वापस लौट आएंगे। कितनी ऐसी एमएसएमई इकाइयां हैं जो लोन लेने की कैपिसिटी में हैं। लोन तो कोई भी व्यक्ति और औद्योगिक इकाईयां तभी लेंगी जब उनके पास रि-पेमेंट की कैपिसिटी हों। रि-पेमेंट की कैपिसिटी इसलिए कि जो बैंक या आरबीआई किसी इंडस्ट्री लोन मुहैया कराएंगी उसे ईएमआई के रूप में पैसा भी वापस चाहिए।
दूसरी बात मैं आपको यह बता दूं कि देश भर में 6.3 करोड़ एमएसएमई इकाईयां हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बयानों पर ही गौर फरमाएं तो उन्होंने कहा कि 45 लाख औद्योगिक इकाईयों को इसका लाभ मिलेगा। अब आप ही अंदाजा लगाइए कि अगर 45 लाख एमएसएमई को लोन मिल भी गया तो इससे अर्थव्यवस्था में कितना सुधार हो पाएगा।
मानव विकास अर्थशास्त्री प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा ने बताया कि सरकार ने संकट से बाहर निकालने की जिम्मेदारी खुद की लेने के बजाए कारपोरेट सेक्टरों के उद्यमी, एमएसएमई उद्यमी व आम कारोबारियों व बैंकिंग सेक्टर पर डाल दिया है। सरकार ने केवल क्रेडिट लाइन देने की बात की है। इससे क्या होगा, जब उद्यमी लोन लेने की स्थिति में ही न हो।
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जेएनयू के प्रो. संतोष मेहरोत्रा का कहना है कि सरकार को पूरी तरह से बैंकिंग लोनिंग सिस्टम पर एमएसएमई व बड़े उद्योगपतियों को छोड़ने के बजाए इस समस्या का निदान फिसकल सिमुलस के जरिए निकालने पर जोर देना चाहिए था। इसके जरिए सरकार या तो अपना खर्च बढ़ाकर या आय बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकती थी। लेकिन सरकार ने दोनों मोर्चे पर कुछ नहीं किया। अगर सरकार आय बढ़ाने के लिए कदम आगे बढ़ाएंगी तो उसे या तो निवेश हासिल करने होंगे या टैक्स स्लैब में बदलाव करना जरूरी होगा।
उन्होंने कहा ग्लोबल आर्थिक संकट 2008 का जिक्र करते हुए कहा कि कोरोना क्राइसिस उससे भी कई गुना बड़ा है। ऐसा इसलिए कि कोरोना संकट से अर्थव्यवस्था को नुकसान होने के साथ मानवीय स्वास्थ्य के समक्ष भी खतरा उत्पन्न हो गया है।

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