देशभर में तेजी के साथ कोरोना टीकाकरण को भी आगे बढ़ाया जा रहा है। वैक्सीनेशन में और भी तेजी लाने के लिए देशी वैक्सीन के साथ-साथ विदेशी वैक्सीन को भी आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी जा रही है। इसी बीच भारत की रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई के लिए एक दवा बनाई गई है। अब एक साल के क्लीनिकल ट्रायल के बाद DRDO की इस दवा को आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी दे दी गई है।
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ऐसे में अब ये देखना जरूरी है कि यह स्वदेशी दवा कोरोना के खिलाफ कितना कारगर साबित होता है और क्या यह एक गेम चेंजर साबित हो सकता है? DRDO की यह एंटी-कोविड ड्रग्स किस प्रकार से काम करता है? बता दें कि डॉक्टर रेड्डी लैब और डीआरडीओ लैब इंस्टीट्यूट ने मिलकर 2-डीजी दवा को बनाया है, जिसे डीसीजीआई ने मेडिकल अनुप्रयोग के इमरजेंसी यूज की मंजूरी दे दी है।
यह कैसे काम करता है?
जानकारी के अनुसार, इस दवा के जरिए मध्यम व गंभीर लक्षण वाले कोरोना मरीजों का इलाज हो सकेगा। डीआरडीओ के अनुसार इसमें सामान्य अणु और ग्लूकोज का एनालॉग है, जिसकी वजह से इसका उत्पादन सरलता से किया जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, जब दवा, 2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज (2-डीजी) शरीर में प्रवेश करती है, तो यह वायरस द्वारा संक्रमित कोशिकाओं के अंदर जमा हो जाती है। एक बार वहां यह वायरस के ऊर्जा उत्पादन और चयापचय प्रतिक्रिया को रोकता है और इसे बढ़ने से रोकता है। DRDO का कहना है कि केवल वायरल संक्रमित कोशिकाओं में चयनात्मक संचय इसे अद्वितीय बनाता है।
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इसका सेवन कैसे किया जाता है?
DRDO के अनुसार, य दवा पाउडर के रूप में आती है और इसे पानी में घोलकर मौखिक रूप से लेना पड़ता है।
क्या यह गेम-चेंजर साबित होगा?
देश में अभी दो स्वदेशी वैक्सीन (कोविशील्ड और कोवैक्सीन) का टीका लगाया जा रहा है। वहीं अब DRDO की दवा आने के बाद ये माना जा रहा है कि यह गेम चेंजर साबित हो सकता है, क्योंकि यह पाउडर के रुप में उपलब्ध है।
जानकारी के अनुसार, इस दवा के सेवन से मेडिकल ऑक्सीजन पर मरीजों की निर्भरता को कम कर सकती है। अस्पताल के परीक्षणों में यह पाया गया कि 42 फीसदी मरीजों, जिन्हें प्रतिदिन दवा के दो पाउच दिए गए थे, तीसरे दिन तक ऑक्सीजन सपोर्ट बंद हो गया। मानक उपचार के तहत केवल 3 फीसदी मरीजों में ही 30 फीसदी ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ी।