नई दिल्ली। अमूल बटर के विज्ञापनों में नजर आने वाली प्यारी सी अमूल गर्ल 50 साल की हो गई है। नीले बाल, बिना नाक, लाल गाल और पोल्का डॉट वाली फ्रॉक पहनने वाली ये अमूल गर्ल देश-दुनिया के हर ज्वलंत मुद्दे पर कटाक्ष देती नजर आती है। 2014 में जब मोदी सरकार आई थी तो इसकी पंच लाइन थी अच्छा दिन-नर आया है।
भारत में इमरजेंसी के दौर से लेकर नसबंदी तक पर अमूल गर्ल ने मक्खन के साथ ही अपनी चाटुकारिता दिखाई है। कई बड़े विवादों पर अमूल गर्ल की ओर से दी गई पंच लाइन यादगार बन चुकी हैं। पिछले महीने पीएम मोदी के जन्मदिन पर जब अमूल की तरफ से बधाई दी गई तो कई बार मजाक बन चुके मोदी ने भी इसका बखूबी जवाब दिया। पीएम मोदी ने लिखा आपका मजाक करने का तरीका हमेशा से मुझे पसंद है।
अमूल गर्ल के पीछे है तीन लोगों की टीम
क्या आप जानते हैं कि इस अमूल गर्ल के पीछे किन लोगों का दिमाग और क्रिएटिविटी है। इन विज्ञापनों को तैयार करने के लिए तीन लोगों की टीम बनी हुई है जो हर सप्ताह 6 कार्टून तैयार करती हैं। इन विज्ञापनों की कैंपेन डाकुन्हा कम्यूनिकेशंस करती है। इस कंपनी के क्रिएटिव हैड हैं राहुल डाकुन्हा, कॉपी राइटर हैं मनीष झावेरी और करीब ढाई दशकों से अमूल गर्ल को बनाने वाले कार्टूनिस्ट जयंत राणे हैं। डाकुन्हा के विज्ञापन काफी हद तक आक्रामक होते हैं।डाकुन्हा और झावेरी रोजाना अपना दिन एक ही तरह से शुरू करते है।
अखबारों को खंगालने के बाद आता है विज्ञापन का आइडिया
सुबह वे अखबारों को खंगालते हैं और उनमें छोटे-बड़े घोटाले, मजदूरों का आंदोलन, खेलों का विवाद, भ्रष्टाचार प्रदर्शन, इमारतों का ढह जाना, कुछ विवादित होना या फिर ऐसा कुछ भी खोजते हैं जिनपर देशभर में चर्चा हो रही होती है। वहीं, रोजाना सुबह विज्ञापन के लिए मुद्दा ढूंढऩे के बाद उसकी पटकथा के बारे में चर्चा की जाती है। पटकथा और इसका मुद्दा तैयार होने के बाद कार्टूनिस्ट जयंत राणे को इस बारे में बताया जाता है। राणे एक कागज पर अपनी पेंसिल घुमाना शुरू कर देते हैं और अमूमन आधे घंटे में अमूल गर्ल के साथ उस मुद्दे से जुड़ी मुख्य तस्वीर दे देते हैं। इसके बाद डाकुन्हा इसमें हो सकने वाले जरूरी सुधारों और बेहतर किए जाने की संभावना होने पर कुछ जानकारी देते हैं और फिर ऐड फाइनल हो जाता है।
आक्रामक विज्ञापनों के लिए विवादों में रहती है अमूल गर्ल
डाकुन्हा के विज्ञापन काफी हद तक आक्रामक होते हैं। इस आक्रामक विज्ञापनों की वजह से यह कई बार विवादों में भी छाए रहे हैं। लेकिन यह विज्ञापन एजेंसी इतने बोल्ड संदेश देने वाले एड तैयार करने का श्रेय सहकारी दुग्ध कंपनी अमूल के संस्थापक वर्गीज कुरियन को देती है क्योंकि वो किसी से भी नहीं डरते थे और उन्होने ही डाकुन्हा कम्यूनिकेशंस को आजादी दी थी की वो ज्वलंत मुद्दो को अपना टारगेट बनाए। वर्गीज कुरियन 2012 में ही दुनिया को अलविदा कह गए। लेकिन उनका नाम आज भी जिंदा है।
1966 में हुई रची गई थी अटरली-बटरली अमूल गर्ल
1966 में अमूल के विज्ञापन की शुरूआत हुई थी और इसकी कमान एडवरटाइजिंग सेल्स एंड प्रमोशन के मैनेजिंग डायरेक्टर सिल्वेस्टर डाकुन्हा को दी गई थी। इन विज्ञापनों की शुरूआत थोड़ी बोरिंग थी लेकिन धीरे-धीरे इसने रोचक रफ्तार पकड़ी क्योंकि डाकुन्हा ने ठान लिया था कि वो अमूल के विज्ञापनों की बोरिंग इमेज बदल कर रख देंगे और उन्होंने वैसा ही किया। जब अमूल बटर की शुरूआत हुई थी तब पॉल्सन नाम की कंपनी भी टक्कर में थी क्योंकि वो भी बटर का उत्पाद करती थी और अच्छा खासा बिजनेस कर रही थी। पॉल्सन अपने विज्ञापन में एक बटर गर्ल का इस्तेमाल करता था। इसी गर्ल को टक्कर देने के लिए डाकुन्हा ने अपने एजेंसी के आर्ट डायरेक्टर यूस्टेस पॉल फर्नांडिज के साथ बैठकर एक ऐसी गर्ल की कल्पना करी जो तुरन्त लोगों के दिन और दिमाग में समा जाए।
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