पुरातन में इन नगरों का किया था निर्माण पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा ने भगवान कृष्ण की नगरी द्वारिका का निर्माण किया था। इन्होंने ही युधिष्ठिर की नगरी इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया था और अपनी कला से इसे मायावी रूप दिया था। इन्होंने ही सोने की लंका को बसाया था।
सृष्टि निर्माण के साथ ही बनाए कई औजार पूरी सृष्टि के निर्माण के साथ ही इन्होंने कई औजार भी बनाए। कई दिव्य शास्त्रों का निर्माण किया था। इसमें देवराज इंद्र का व्रज भी है। इन्हें महर्षि दधिची की हड्डियों से बनाया गया था। पंडित कैलाश नाथ ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सर्वप्रथम विष्णु ने अवतार लिया था। उनकी नाभि में कमल पुष्प में ब्रह्म देव विराजमान थे। ब्रह्म देव को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है। अतः उन्होंने सबसे पहले धर्म को जन्म दिया। धर्म ने वस्तु नामक एक कन्या से विवाह किया। वह प्रजापति दक्ष की पुत्री थी। उनसे उन्हें वास्तु नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। वास्तु भी शिल्पकार थे। विश्वकर्मा वास्तु की संतान थे, जो अपने पिता के समान ही श्रेष्ठ शिल्पकार बने और ब्रह्मांड का निर्माण किया।
ऐसे करें भगवान विश्वकर्मा की पूजा भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति की स्थापना करने के बाद विराजित कर इनकी पूजा की जाती है। इस दिन इंजीनियर अपने कार्य स्थल, निर्माण स्थल की पूजा करते हैं। मजदूर वर्ग अपने औजारों की पूजा करते हैं। कारखानों में अवकाश रखा जाता है। बुनकर, बढ़ई व सभी प्रकार के शिल्पी इस दिन विश्वकर्मा देव की पूजा करते हैं। इस दिन कई स्थानों पर यज्ञ किया जाता हैं।