इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आइसीएआर) और विधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल तथा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन, तेलंगाना के 12 वैज्ञानिकों की अध्ययन रिपोर्ट में सामने आया कि गेहूं और चावल का पोषक मूल्य पिछले 50 साल में 45 फीसदी तक कम हुआ है। जबकि आर्सेनिक, बोरियम की मात्रा बढ़ती जा रही है। इससे कैंसर, किडनी और पेट की बीमारियां हो रही है। अगर ऐसा ही रहा तो 2040 तक इन अनाजों की पोषकता बहुत कम हो जाएगी।
वहीं, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एनआइएन) की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मिट्टी में पोषक तत्वों कमी से फलों, सब्जियों, अनाज और दालों में आवश्यक पोषक तत्वों में कमी आई है, जो स्वास्थ्य के लिए बड़ी चिंता का विषय है। उर्वरक और कीटनाशकों के चलते धरती में नाइट्रोजन, पोटाश, आयरन की कमी लगातार हो रही है।
नाइट्रोजन की कमी तो 99 प्रतिशत हो गई है। फॉस्फोरस कहीं अधिक तो कहीं कम है। जिंक व आयरन की कमी भी 50 प्रतिशत तक पहुंच गई है। जमीन में मैंगनीज व कॉपर की मात्रा भी 10 फीसदी से कम हो गई है।
राजस्थान की मिट्टी भी बीमार
प्रदेश का ऐसा कोई जिला नहीं है, जहां जमीन में पोषक तत्वों की कमी नहीं है। विभाग को मिट्टी की जांच में 4 जिलों के अलावा हर जिले में नाइट्रोजन की मात्रा कम मिली है। हालांकि टोंक, प्रतापगढ़, बारां और भीलवाड़ा में जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा मध्यम है। दौसा, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, नागौर, चूरू व जैसलमेर में फॉस्फोरस कम मिला है। टोंक, बूंदी, कोटा, झालावाड़, जोधपुर, सवाईमाधोपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद, सीकर, हनुमानगढ़ में पोटाश की मात्रा अधिक मिली।
ज्यादा उर्वरक से नुकसान
किसानों को मिट्टी जांच रिपोर्ट के अनुसार पोषक तत्वों का उपयोग करना चाहिए। अधिक मात्रा में रासायनिक खाद का उपयोग पौधा भी पूरी तरह नहीं कर पाता है। इसलिए संतुलन जरूरी है। -विनोद रांगेरा, संयुक्त निदेशक रसायन, कृषि विभाग, राजस्थान हाइब्रिड बीज दे रहे एलर्जी
फसलों में खाद और कीटनाशकों के अधिक उपयोग से कैंसर, किडनी, पेट, फेफड़ों, त्वचा आदि की बीमारियों बढ़ी हैं। हाइब्रिड बीजों से एलर्जी के मामले बढ़े हैं। लोगों को गेंहू नहीं पच रहा।
-डॉ. हेमेन्द्र भारद्वाज, उदर रोग विशेषज्ञ, एसएमएस, जयपुर जैविक फसलें विकल्प मगर महंगी… राजस्थान समेत देश भर में जैविक खेती का चलन बढ़ रहा है। राज्य में पशुपालन के चलते जैविक खेती में लगातार बढ़ोतरी हो रही है लेकिन तकनीक की कमी के चलते खेती महंगी हो रही है।